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पंख पर उद्धरण

पंख उड़ान का रूपक है

और इसका संबंध कवि की तमाम कल्पनाओं की उड़ान से जाकर जुड़ता है। इस चयन में पंख और उड़ान संबंधी विशिष्ट कविताओं का संकलन किया गया है।

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पंख आज़ादी तभी देते हैं, जब वे उड़ान में खुले हुए होते हैं। किसी की पीठ पर लदे वे भारी वज़न ही हैं।

मरीना त्स्वेतायेवा
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उसके पंखों को काट दिया जाता है और फिर उस पर उड़ना आने का इल्ज़ाम लगाया जाता है।

सिमोन द बोउवार
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एक कीड़ा होता है—अँखफोड़वा, जो केवल उड़ते वक़्त बोलता है—भनु-भनु-भन्! क्या कारण है कि वह बैठकर नहीं बोल पाता? सूक्ष्म पर्यवेक्षण से ज्ञात होगा कि यह आवाज़ उड़ने में चलते हुए उसके पंखों की है।

फणीश्वरनाथ रेणु

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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