

गीता ने उपदेश तो फलासक्ति के त्याग का दिया था; किन्तु साधकों ने कर्मन्यास का अर्थ फलासक्ति का त्याग नहीं, कर्म मात्र का त्याग लगा लिया।

निष्काम कर्मयोगी तभी सिद्ध होता है जब हमारे बाह्य कर्म के साथ अंदर से चित्तशुद्धि रूपी कर्म का भी संयोग होता है।

मैं महसूस करता हूँ कि मैं कुछ नहीं कर पाया हूँ। यही वह बात है जो मुझे अपने लेखन, शैली और प्रतीकों में सुधार के लिए मज़बूर करती है।

स्व. का विसर्जन करके ही हम पूर्ण रूप से मुक्त हो सकते हैं।

कर्मन्यास का अर्थ; कर्म का त्याग नहीं, केवल फलासक्ति का त्याग है।

भोग व त्याग के बीच का द्वंद्व, साहित्य का अनंत विषय है तो मनोविज्ञान का भी।
भोग व त्याग के बीच का द्वंद्व, साहित्य का अनंत विषय है तो मनोविज्ञान का भी।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere