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सन्नाटा पर कविताएँ

सन्नाटा का अर्थ है—स्तब्धता,

ख़ामोशी, मौन। यह निर्जनता और एकांत का भी अर्थ देता है। रूपक में सन्नाटा चीख़ का विलोम भी हो सकता है, चीख़ का प्रतिरोध और पर्याय भी। प्रस्तुत चयन में शामिल कविताओं में सन्नाटे की आवाज़ को बख़ूबी सुना जा सकता है।

ख़ाली मकान

स्टीफन स्पेंडर

हम अब कुछ देर

विनोद कुमार शुक्ल

ज्ञ

प्रकाश

मौन

उमा भगत

तुम्हारा मौन

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

चुप्पी

निशात अंसारी

तुम और मैं

गुलाब नबी फ़िराक़

समय के उलट

अंजुम शर्मा

अकथ

प्रकाश

मेरे भीतर की कोयल

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

चुप्पी

गिरधर राठी

अतिक्रमण

प्रदीप अवस्थी

नया करती हुई

नंदकिशोर आचार्य

कुछ न होने के तले

अमिताभ चौधरी

बोल रहा जल

नंदकिशोर आचार्य

छंद

अज्ञेय

जड़ता का गीत

इब्बार रब्बी

सन्नाटा

नेमिचंद्र जैन

समझदारों का गीत

गोरख पांडेय

भीगना

अमेय कांत

चुप्पी का समाजशास्त्र

जितेंद्र श्रीवास्तव

श्राप

संगीता गुंदेचा

सन्नाटा

भवानीप्रसाद मिश्र

सन्नाटा

जगन्नाथ प्रसाद दास

पुरानी ख़ामोशी

दिलीप शाक्य

जा चुके लोग

उत्कर्ष

मुलाक़ात

नवीन रांगियाल

आरफ़्यूज़

दूधनाथ सिंह

चुप रहिए

राम जन्म पाठक

साँवली ख़ामोशी

विजय बहादुर सिंह

पाँव पसारती है चुप

पारुल पुखराज

तुम्हारी याद

आशीष त्रिपाठी

एक गहरी चुप्पी

वंदना पराशर

अनाहत नीरवता के नग्न लोक में

वीरेंद्र कुमार जैन

ख़ून और ख़ामोशी

सविता सिंह

विरह

सुमित त्रिपाठी

अगली सदी तक

नरेंद्र जैन

इक लरज़ता नीर था

सुरजीत पातर

चुप्पी

आशीष यादव

झींगुर

शिवम तोमर

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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