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सर्दी पर कविताएँ

छह ऋतुओं में से एक शिशिर

शीत ऋतु है; जब घना कोहरा छाने लगता है, दिशाएँ धवल-उज्ज्वल हो जाती हैं और भारी ओस से प्रकृति भीग जाती है। मान्यता है कि शिशिर में सूर्य अमृत-किरणों की वर्षा करता है। प्रस्तुत चयन में शिशिर को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

अशाश्वत

मंगलेश डबराल

पहली बारिश

सुधांशु फ़िरदौस

इन सर्दियों में

मंगलेश डबराल

सर्दी

रमेश क्षितिज

दिसंबर

बेला अख़्मादूलीना

सर्दियों की बारिश

मोनिका कुमार

शाम—एक किसान

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

शीतलहर

मोनिका कुमार

अधूरा स्वेटर

विनोद दास

जाड़े की शाम

धर्मवीर भारती

एकतरफ़ा प्यार

सुधांशु फ़िरदौस

मुंबई की ठंडी

कुमार वीरेंद्र

या

प्रदीप सैनी

जाड़े की साँझ

अलेक्सांद्र पूश्किन

बहुत नहीं जीना

कुशाग्र अद्वैत

ईर्ष्या

चंदन सिंह

जाड़े की सुबह

अलेक्सांद्र पूश्किन

सर्दियों में

कल्पना पंत

पूस की रात

आकांक्षा

सर्दी की ठंड में

संस्कृतिराणी देसाई

रजाई

रामाज्ञा शशिधर

फ़िरोज़ी मफ़लर

कल्पना मनोरमा

शिशिरांत

हरिनारायण व्यास

जाड़ा

शहंशाह आलम

खिचड़ी

पंकज विश्वजीत

शिशिर की शर्वरी

विनोद पदरज

शिशिर का आलिंगन

मनप्रसाद सुब्बा

खाओ-पियो और सो जाओ

नीलेश रघुवंशी

एक नया पत्ता वह

कुमार मुकुल

षड्यंत्र

महेश चंद्र पुनेठा

उसका क्या हुआ?

राजकुमार केसवानी

ये सर्दियाँ

ममता बारहठ

सर्दियों का आना

शुभम् आमेटा

मेरी तुम

शंभु यादव

ठंड

विनोद भारद्वाज

शिशिर के दिन

नंद चतुर्वेदी

यह सर्दी

प्रमोद कौंसवाल

किरण-जल

उद्भ्रांत

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere