भाषा पर निबंध
भाषा मानव जाति द्वारा
प्रयुक्त वाचन और लेखन की प्रणाली है जिसका उपयोग वह अपने विचारों, कल्पनाओं और मनोभावों को व्यक्त करने के लिए करता है। किसी भाषा को उसका प्रयोग करने वाली संस्कृति का प्रतिबिंब कहा गया है। प्रस्तुत चयन में कविता में भाषा को एक महत्त्वपूर्ण इकाई के रूप में उपयोग करती कविताओं का संकलन किया गया है।
संपादकों के लिए स्कूल
कुछ दिन हुए अख़बारों में यह चर्चा हुई थी कि अमेरिका में संपादकों के लिए स्कूल खुलने वाला है। इस स्कूल का बनना शुरू हो गया और इस वर्ष इसकी इमारत तो पूरी हो जाएगी। आशा है कि स्कूल इसी वर्ष जारी भी हो जाए। अमेरिका के न्यू प्रांत में कोलंबिया नामक एक विश्वविद्यालय
महावीर प्रसाद द्विवेदी
क्या हिंदी नाम की कोई भाषा ही नहीं?
जी हाँ, इस नाम की कोई भाषा नहीं। कम से कम संयुक्त प्रांतों में तो इसका कहीं पता नहीं ! ऑनरेबल असग़र अली ख़ाँ, ख़ान बहादुर, की यही राय है। प्रमाण? इसकी क्या ज़रूरत? ख़ान बहादुर का कहना ही काफ़ी प्रमाण है! प्रारंभिक शिक्षा-कमिटी ने रीडरों की भाषा के
महावीर प्रसाद द्विवेदी
हिंद, हिंदु और हिंदी
ये तीनों हकारादि शब्द ने केवल अकेले हमीं, को वरंच हिंद-निवसी समस्त हिंदुओं को श्रवणानंददाई है। इन तीनों के आदि का ‘ह’ अक्षर मिलकर ह-ह-ह—प्रसन्नता-सूचक हास्य का रूप व अंग होता है। यों ही कभी-कभी यही शब्द कष्ट व उपहास का भी वची हो जाता है; यों ही तीन ‘हिं’
बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
प्राचीन भारत में मदनोत्सव
संस्कृत के किसी भी काव्य, नाटक, कथा और आख्यायिका को पढ़िए, वसंत ऋतु का उत्सव उसमें किसी-न-किसी बहाने अवश्य आ जाएगा कालिदास तो वसंतोत्सव का बहाना ढूँढते रहते से लगते हैं। मेघदूत वर्षा ऋतु का काव्य है, पर यक्षप्रिया के उद्यान के वर्णन के प्रसंग में प्रिया
हजारीप्रसाद द्विवेदी
मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है
मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ। जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से बचा न सके, जो उसकी आत्मा को तेजोदीप्त न बना सके, जो उसके हृदय को परदु:ख कातर और संवेदनशील न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता
हजारीप्रसाद द्विवेदी
हमारे पुराने साहित्य के इतिहास की सामग्री
हिंदी साहित्य का इतिहास केवल संयोग और सौभाग्यवश प्राप्त हुई पुस्तकों के आधार पर नहीं लिखा जा सकता। हिंदी का साहित्य संपूर्णतः लोक भाषा का साहित्य है। उसके लिए संयोग से मिली पुस्तकें ही पर्याप्त नहीं है। पुस्तकों में लिखी बातों से हम समाज की किसी विशेष
हजारीप्रसाद द्विवेदी
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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