भूख पर दोहे
भूख भोजन की इच्छा प्रकट
करता शारीरिक वेग है। सामाजिक संदर्भों में यह एक विद्रूपता है जो व्याप्त गहरी आर्थिक असमानता की सूचना देती है। प्रस्तुत चयन में भूख के विभिन्न संदर्भों का उपयोग करती कविताओं का संकलन किया गया है।
चंच संवारी जिनि प्रभू, चूंन देइगो आंनि।
सुंदर तूं विश्वास गहि, छांडि आपनी बांनि॥
सुंदर प्रभुजी देत हैं, पाहन मैं पहुंचाइ।
तूं अब क्यौं भूखौ रहै, काहे कौं बिललाइ॥
सुंदर प्रभुजी सब कह्यौ, तुम आगै दुख रोइ।
पेट बिना हीं पेट करि, दीनी खलक बिगोइ॥
नदी भरहिं नाला भरहिं, भरहिं सकल ही नाड।
सुन्दर प्रभु पेट न भरहिं, कौंन करी यह खाड॥
कूप भरै बापी भरै, पूरि भरै जल ताल।
सुन्दर प्रभु पेट न भरै, कौंन कियौ तुम ख्याल॥
सुन्दर प्रभुजी पेट कौं, बहु बिधि करहिं उपाइ।
कौंन लगाई ब्याधि तुम, पीसत पोवत जाइ॥
और ठौर सौं काढि मन, करिये तुम कौं भेट।
सुन्दर क्यौं करि छूटिये, पाप लगायौ पेट॥
देह रच्यौ प्रभु भजन कौं, सुन्दर नख सिख साज।
एक हमारी बात सुनि, पेट दियौ किंहिं काज॥
हाथ पांव हरि कृत्य कौं, जीभ जपान कौं नाम।
सुन्दर ये तुम सौं लगै, पेट दियौ किंहीं काम॥
सुन्दर प्रभुजी पेट कौं, दूधाधारी होइ।
पाखंड करहिं अनेक बिधि, खाहिं सकल रस गोइ॥