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रात पर कविताएँ

उजाले और अँधेरे के प्रतीक

रूप में दिन और रात आदिम समय से ही मानव जिज्ञासा के केंद्र रहे हैं। कविताओं में रात की अभिव्यक्ति भय, आशंका और उदासी के साथ ही उम्मीद, विश्राम और शांति के रूप में हुई है। इस चयन में उन कविताओं को शामिल किया गया है; जिनमें रात के रूपक, प्रतीक और बिंब से जीवन-प्रसंगों की अभिव्यक्ति संभव हुई है।

सफ़ेद रात

आलोकधन्वा

चंदा मामा

आकिको हायाशी

यादगोई

सुधांशु फ़िरदौस

रात दस मिनट की होती

विनोद कुमार शुक्ल

चौराहा

राजेंद्र धोड़पकर

यह उस रात की कहानी है

प्रदीप अवस्थी

रात्रि-गीत

ओक्ताविओ पाज़

एक रात द्वीप पर

पाब्लो नेरूदा

अँधेरे में

गजानन माधव मुक्तिबोध

उम्मीद

विमलेश त्रिपाठी

निशा और उषा

बोरीस पस्तेरनाक

अँधेरे का सौंदर्य-2

घुँघरू परमार

निशांत के ठीक पहले

फिलीप जेकोते

गिद्ध कलरव

अणुशक्ति सिंह

उसने उससे कहा

महमूद दरवेश

आधी रात

मान्युएल बान्दैरा

एक रात

सी. पी. कवाफ़ी

ठंडी रात

हो चि मिन्ह

राख

वास्को पोपा

रात में

एलिज़ाबेथ जेनिंग्स

काव्य-शिल्प

पॉल कालिने

रात

बोरीस पस्तेरनाक

जाड़े की एक रात

टॉमस ट्रांसट्रोमर

इनसोम्निया

प्रदीप अवस्थी

हमसफ़र

सुधांशु फ़िरदौस

सारी रात

यीव बोनफ़्वा

नींद में रुदन

सविता सिंह

जुगनू

गीत चतुर्वेदी

राग यमन

अरुणाभ सौरभ

अकेली रात

देवदास छोटराय

रात, डर और सुबह

नेहा नरूका

दो शहर एक रात

गौरव गुप्ता

आज रात बारिश

सविता भार्गव

रात

विनय सौरभ

रात का फूल

उदय प्रकाश

एक रात का सफ़र

शुभम् आमेटा

पाप, साँप और मैं

शैलेंद्र साहू

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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