
मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है।

जब काम बहुत है और समय कम है, तो मनुष्य क्या करे? धैर्य रखे, और जो ज़्यादा उपयोगी माने उसे पूरा करे और बाक़ी ईश्वर पर छोड़ दे। दूसरे रोज़ ज़िंदा होगा तो जो रह गया है उसे पूरा करेगा।

सच्चा उपवास एक मूक और अदृश्य आदमी शक्ति पैदा करता है, जो यदि उसमें आवश्यक बल और पवित्रता हो, तो सारी मानव जाति में व्याप्त हो सकती है।

पूर्वज, भगवान, अतिथि, बंधु तथा स्वयं इन पाँचों के लिए धर्मानुकूल सतत कर्म करना ही गृहस्थ का प्रधान कर्त्तव्य है।

आत्मशुद्धि सबसे पहली चीज़ है, वह सेवा की अनिवार्य शर्त है।
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भारत के वक्ष पर असम एक विशिष्ट देश है। यहाँ की रीति-नीति, जीवन-गति भी विशिष्ट है। आदि-सभ्यता से ही असम ने अपना विक्रम, नाम और सम्मान उज्ज्वल कर रखा है। रीति-नीति, संस्कृति सभ्यता, वेश-भूषा आदि में अपनी विशिष्ट नीति को अपनाए हुए सुप्राचीन असमिया जाति अपने संपूर्ण इतिहास में आत्म-सम्मान के कारण सम्मानित है।

काम, काम और काम ही हमारा जीवन सूत्र होना चाहिए।

तंत्र के साथ मंत्र होना चाहिए। केवल बाह्य तंत्र का कोई महत्त्व नहीं। केवल कर्महीन मंत्र का कोई महत्त्व नहीं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere