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नलिनीबाला देवी

1898 - 1977 | बरपेटा, असम

‘असमिया भाषा की महादेवी’ के रूप में समादृत कवयित्री-लेखिका। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

‘असमिया भाषा की महादेवी’ के रूप में समादृत कवयित्री-लेखिका। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

नलिनीबाला देवी के उद्धरण

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विश्व तुम्हारा बाहुबल नहीं, बल्कि नीरव आश्वासन और सुकुमार हृदय की शक्ति का निर्झर विश्वास ही चाहता है।

हे नारी! तुम्हारे स्पर्श से ही पृथ्वी को रूप मिला है और सुधा रस का स्पर्श मिला है! जीवन कुसुम को परिवेष्टित कर कवियों ने विश्व गुंजा दिया जिससे काव्य का सुरस विकसित हो उठा।

तुममें भारती अतीत का नारी-रत्न खोज रही है, जिसमें सत्य की पवित्र, ज्योति, चरित्र की महान महिमा प्रकाशित है |

तुम्हारे हाथ स्वार्थमयी पृथ्वी की कलुष-कालिमा पोंछ देते हैं। प्रेम के दीप जलाकर, कर्तव्य की तपस्या से तुम संसार-पथ में गरिमा का वितरण करती हो।

तुम आदि मानव की प्रिया हो। तुम संपूर्ण जगत की माता हो। संजीवनी अमृत पिलाकर तुम रूप देती हो। तुम प्रेरणा की अनुभूति को मधुर मातृत्व में ढालकर अपने प्राण न्योछावर कर जाति को जीवित रखती हो।

मरने पर, जैसे भी हो, मैं अपने इस दुःखी देश में ही फिर से जन्म लूँ।

तुम वही शरद्कालीन अमृतमयी ज्योत्स्ना हो, जो विषाद की घन घटाओं को दूर करती है। तुम्हारे हृदय के पुण्य स्पर्श मात्र से दरिद्र की कुटिया शांति निकेतन बन जाती है।

विफलता को लेकर ही इस जीवन-संगीत की मैंने रचना की है। दोनों आँखों से आँसू की बूंदें टपकती हैं। इस विशाल विश्व में केवल नयनाश्रुओं से ही मेरा सागर-तट भर गया।

हे माता! तुम्हारी यह धूलि, जल, आकाश और वायु—सभी मेरे लिए स्वर्ग तुल्य हैं। तुम मेरे लिए मर्त्य की पुण्य मुक्ति भूमि एवं तीर्थस्वरूपा हो।

भारत के वक्ष पर असम एक विशिष्ट देश है। यहाँ की रीति-नीति, जीवन-गति भी विशिष्ट है। आदि-सभ्यता से ही असम ने अपना विक्रम, नाम और सम्मान उज्ज्वल कर रखा है। रीति-नीति, संस्कृति सभ्यता, वेश-भूषा आदि में अपनी विशिष्ट नीति को अपनाए हुए सुप्राचीन असमिया जाति अपने संपूर्ण इतिहास में आत्म-सम्मान के कारण सम्मानित है।

हे पृथ्वी! तुम आज की नहीं, जन्म से ही चिरंतन सुंदरी हो! तुम मेरी अनन्त शांति की विश्रामस्थली और अतीत की स्वप्नलीला-भूमि हो।

हे माता! जन्म के प्रथम प्रभात में ही तुम्हारी गोद में मैंने आँखें खोलीं और जीवन की अंतिम संध्या में, तुम्हारी गोद में सोकर ही आँखें बंद करूँगी।

रात भर जागती हुई दो आँखों की व्याकुलता अंकित कर केवल हृदय की वार्ताओं को ही प्रकट करते हो, कोई ध्वनि है, कोई कथा ही।

जगत में कौन किसका प्यारा है? सभी दो दिनों के परिचित हैं। ससीमकी रूप-तृष्णा प्यार का धागा टूटते ही असीम में विलीन हो जाएगी।

मेरे स्नेही देश! तुम्हारी दुखी कुटिया में स्वर्ग की शांति है। ऐसी प्रीति, सहज प्राणस्पर्शी भाषा और सेवा का महिमामय त्याग, मैं कहाँ पाऊँगी?

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