noImage

विष्णु शर्मा

विष्णु शर्मा के उद्धरण

श्रेणीबद्ध करें

जिसकी पत्नी पतिव्रता है, पति को प्राणों से भी अधिक प्यार करने वाली है तथा पति के ही हित में संलग्न है, वह पुरुष इस पृथ्वी पर धन्य है।

मेधावी तथा समर-शूर पुरुष भी स्त्री के समीप परम कायर हो जाते हैं।

आयु के बीत जाने पर भी जिनके पास धन है, वे तरुण हैं। धन-हीन युवक होते हुए भी वृद्ध हो जाते हैं।

राजा दुर्मंत्र से नष्ट हो जाता है, यति संग से, पुत्र अधिक लालन से, ब्राह्मण अध्ययन करने से, कुल कुपुत्र से शील दुष्टों के संसर्ग से, मित्रता प्रेम के अभाव से, समृद्धि अनीति से, स्नेह प्रवास में रहने से, स्त्री गर्व से, कृषि छोड़ देने से तथा धन प्रमाद से विनष्ट हो जाता है।

धन के उपार्जन में दुःख होता है। और उपार्जित धन की रक्षा में भी दुःख होता है। आय में दुःख व्यय में दुःख। सब प्रकार से दुःख देने वाले धन को धिक्कार है।

  • संबंधित विषय : दुख
    और 1 अन्य

जिसके पास बुद्धि है, उसी का बल है। बुद्धिहीन में बल कहाँ!

धीर और मनस्वी मनुष्य के लिए क्या अपना देश है और क्या विदेश है? वह तो जिस देश में जाता है, उसी को अपने भुजा-बल से अपने वश में कर लेता है।

बुद्धिमान मनुष्य तीक्ष्ण शत्रु को तीक्ष्ण शत्रु से नष्ट कर देता है। सुख की प्राप्ति हेतु कष्टकारक काँटे को काँटे से ही निकालते हैं।

स्त्री के वचनों से प्रेरित मनुष्य अकरणीय को करणीय मानते हैं, अगम को सुगम समझते हैं तथा अभक्ष्य को भक्ष्य मानते हैं।

गुणवानों की गणना के आरंभ में खडिया जिसका नाम गौरवपूर्वक नहीं लिखती, ऐसे पुत्र से यदि माता पुत्रवती बनती है, तो वंध्या कैसी होगी?

अजात, मृत तथा मूर्ख पुत्रों में मृत और अजात पुन श्रेष्ठ हैं क्योंकि ये दोनों थोड़ा दुःख देते हैं और मूर्ख जीवन पर्यंत जलाता है।

कार्यों को प्रारंभ करना बुद्धि का पहला लक्षण है और प्रारंभ किए हुए कार्य को पूरा करना दूसरा।

लक्ष्मी उद्योगी पुरुष को प्राप्त होती है। कायर लोग कहते हैं कि जो भाग्य में होगा वह मिलेगा। भाग्य को छोड़कर, अपनी शक्तिभर यत्न करो, फिर भी यदि कार्य सिद्ध हो तो इसमें कोई दोष नहीं है (या यह देखो कि मेरे पुरुषार्थ में क्या दोष रह गया।

इस लोक में बुद्धिमानों की बुद्धि से अगम्य कुछ भी नहीं है। देखो शस्त्रास्रधारी नंदवंशी राजाओं को चाणक्य ने बुद्धि द्वारा ही नष्ट कर दिया था।

विष रहित सर्प को भी अपना विशाल फन फैलाना चाहिए। विष हो या हो, फन फैलाना ही भयकारक होता है।

उन्नत चित्त वाले पुरुषों का यह स्वभाव ही है कि वे बड़ों पर महान् पराक्रम दिखाते हैं, दुर्बलों पर नहीं।

पंडित मूर्खों के, धनी निर्धनों के, व्रती पापियों के द्वेष्य होते हैं तथा कुल स्त्रियाँ कुलटाओं की द्वेष्य होती है।

दरिद्री व्यक्ति के स्वजन भी सर्वदा दुर्जन बन जाते हैं।

बुद्धिमान लोग इस संसार में गोदान, पृथ्वीदान तथा अन्नदान को भी उतना श्रेष्ठ नहीं बताते जितना श्रेष्ठ सब दानों में अभयदान को बताते हैं।

जिसके घर से अतिथि असम्मानित होकर दीर्घश्वास छोड़ता हुआ चला जाता है, उसके घर से पितरों सहित देवता विमुख होकर चले जाते हैं।

  • संबंधित विषय : घर

शीत में अग्नि अमृत है, प्रिय दर्शन अमृत है, राज-सम्मान अमृत है तथा क्षीर का भोजन अमृत है।

बुद्धिमान पुरुष (असमय में) कछुए की तरह अंग सिकोड़ लें और मार खाकर भी चुप रह जाए किंतु अवसर आने पर काले साँप के समान उठ खड़ा हो।

Recitation