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माँ पर कविताएँ

किसी कवि ने ‘माँ’ शब्द

को कोई शब्द नहीं, ‘ॐ’ समान ही एक विराट-आदिम-अलौकिक ध्वनि कहा है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें माँ आई है—अपनी विविध छवियों, ध्वनियों और स्थितियों के साथ।

मेरे बेटे

कविता कादम्बरी

प्रेमिकाएँ

अखिलेश सिंह

घर की याद

भवानीप्रसाद मिश्र

परवाह

जसिंता केरकेट्टा

मातृभाषा की मौत

जसिंता केरकेट्टा

एक माँ की बेबसी

कुँवर नारायण

पीली साड़ियाँ

गीत चतुर्वेदी

नवस्तुति

अविनाश मिश्र

माँएँ

अंकुश कुमार

ख़ाली आँखें

नवीन रांगियाल

आख़िरी रोटी

नेहा नरूका

माँ की आँखें

श्रीकांत वर्मा

माँ की डिग्रियाँ

अशोक कुमार पांडेय

लौटकर जब आऊँगा

अशोक वाजपेयी

उड़ गई माँ

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

कम ख़ुदा न थी परोसने वाली

चंद्रकांत देवताले

उनतीस नवंबर

नवीन सागर

बचपन-रात

अदनान कफ़ील दरवेश

युवा होता बेटा

पल्लवी विनोद

बासी रोटियाँ

उपासना झा

पहला नाम

प्रेम रंजन अनिमेष

ओ माँ

अमन त्रिपाठी

याद आना

रवींद्रनाथ टैगोर

माँ का नमस्कार

मंगलेश डबराल

पानी और धूप

सुभद्राकुमारी चौहान

मेरा गला दबा दो माँ

नाज़िश अंसारी

छठ का पूआ

रामाज्ञा शशिधर

माँ की याद

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

क़िबला*

अदनान कफ़ील दरवेश

सुनहरे पहाड़

तादेऊष रूज़ेविच

अबॉर्शन

दामिनी यादव

वह चीख़

गोरख पांडेय

माँ का चेहरा

कृष्ण कल्पित

माँ

अमिताभ

माँ

ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

दो फ़ैसले

तादेऊष रूज़ेविच

माँ को पत्र

सर्गेई येसेनिन

युद्ध से पहले मेरी माँ

जॉन गुज़लॉवस्की

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere