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मृदुला गर्ग : वर्जनाओं के पार एक आधुनिका

फ़्योदोर दोस्तोयेवस्की का एक कथन है : 

‘‘तुम्हें जीवन के अर्थ से भी अधिक जीवन से प्रेम करना चाहिए।’’

इस तर्ज़ पर ही मृदुला गर्ग के बारे में विचार किया जा सकता है कि उनके व्यक्तित्व से अधिक प्रेम किया जाए या उनके लेखन से! मृदुला गर्ग एक आधुनिका हैं। उनके साहित्य में दर्शन-तत्त्व को अत्यंत गहराई से रेखांकित किया जा सकता है। उनकी रचनाएँ मनोवैज्ञानिक गलियों से गुज़रते हुए एक प्रकार के जीवन-सत्य के बीच स्वतः चली जाती हैं, उस जीवनानुभूति के बीच जिसे हम अपनी जड़ता के चलते अभिव्यक्ति देने से डरते हैं। उनके साहित्य में गल्प और तत्त्व का ठोस मिश्रण है। वे स्थितियों-परिस्थितियों को आरोपित नहीं करतीं, यही कारण है कि उनके पात्रों में किसी तरह का कोई पश्चाताप नहीं होता। वह जानती हैं कि मनुष्य के आस-पास एक किंवदंती तैयार की गई है, पर इसके पार संशयात्मक सुख और भीषण दुःख की एक दुनिया है—मनुष्य के शरीर और मन से जुड़ी हुई।

मृदुला गर्ग को पढ़ते हुए स्त्री के शरीर और मन को उसी तरह अलग करके देखा जा सकता है, जैसे यौन-इच्छाओं और यौनिकता के भेद को। उनके पास स्त्रियों के अंतःपुर को लिखने की सहज कला है।

मैंने जब ‘चित्तकोबरा’ पढ़ा, तब महसूस किया कि उसकी मनु मेरे रोम-रोम में उग आई है। उसकी तार्किकता और स्वतंत्र निर्णय-क्षमता शिराओं को स्पंदित कर उनमें बहने लगी है। साँसों में ऊष्मा पैदा करने वाला लेखन चेतना में गहराने लगा है। मुझे ‘चित्तकोबरा’ की लेखिका की बौद्धिकता अनगिनत रूढ़ियों को ध्वस्त करते हुए स्त्री-लेखन की ज़मीन को अपने एकांत से रोशनी देती हुई प्रतीत हुई।

हिंदी साहित्य के मठाधीशों की समझ में नहीं आ सकता कि मृदुला गर्ग होना क्या है! 

मृदुला गर्ग होना—भविष्य का एक प्रगतिशील और आधुनिक पड़ाव है। मैं उनकी हाज़िरजवाबी की प्रशंसक हूँ, इसलिए क्योंकि हाज़िरजवाबी सीमाहीन यात्राओं के अनुभव से आती है। यहाँ मैं एक उदाहरण देती हूँ—एक आलोचक ने मृदुला गर्ग के उपन्यास ‘अनित्य’ के बारे में कहा कि यह इतिहास की सेकेंड हैंड जानकारी से लिखा गया उपन्यास है।

मृदुला जी का इस पर जवाब उस अकेली कविता की तरह आता है, जो कविता-संग्रह की अन्य कविताओं के आगे पहाड़ की तरह खड़ी हो जाती है। वह कहती हैं, ‘‘अश्वत्थामा के अलावा सभी को इतिहास की सेकेंड हैंड जानकारी होती है, इसीलिए उसे इतिहास कहते हैं।’’

यह प्रसंग ‘चित्तकोबरा’ के पाँचवें संस्करण के आख़िरी पन्नों पर दर्ज है। ख़ैर, उनका सान्निध्य जितना मिला है; उनकी हाज़िरजवाबी के कई क़िस्से मैंने बटोर लिए हैं। वे फिर कभी...

मैंने हाल ही में उनकी नवीनतम पुस्तक ‘साहित्य का मनोसंधान’ पढ़कर पूरी की। इसमें कृष्णा सोबती पर उनका एक लेख इस तरह ज़ेहन में उतरता है, जैसे आँखों में रात उतरती है। ‘क्या है स्त्रीत्व की भाषा?’ इस पुस्तक में इस सवाल का जवाब है। वह भाषा जिसमें किसी क़िस्म का अंतर्विरोध नहीं है, वह स्त्रीत्व की भाषा है। कृष्णा सोबती की भाषा वही है, इस्मत चुग़ताई और मृदुला गर्ग की भाषा भी यही है। मेरे लिए इस रचना के ज़रिये वह साहित्यकार की भाषा को संगीत के वृत्तों में मानो सिर्फ़ परिभाषित ही नहीं करतीं, बल्कि उसे स्थापित भी करती हैं।

मृदुला गर्ग अपने विषय को लेकर जितनी सजग दिखती हैं, वैसा लेखन दुर्लभ ही पढ़ने को मिलता है। विषय की सजगता ही लेखक को लेखन में दोहराव से बचाती है।

मृदुला गर्ग उन साहित्यकारों की तरह बिल्कुल नहीं हैं, जो युवा लेखक-लेखिकाओं के व्यक्तिगत जीवन में प्रत्यक्ष या सोशल मीडिया के ज़रिये मोरल पुलिसिंग करने को अपना स्वघोषित अधिकार समझते हैं। वह उन गिने-चुने साहित्यकारों में से हैं, जिनका युवा पीढ़ी के साथ सबसे ज़्यादा जुड़ाव और परस्पर संवाद है। मेरी पीढ़ी के लिए वह उमड़ती-घुमड़ती आकाश-गंगा हैं। उनके पास हमारे लिए कई ग्रह हैं। उनका साहित्य हम स्त्रीवादियों के लिए पितृसत्ता और स्त्री-द्वेष के ख़िलाफ़ एक ऐसी उर्वर ज़मीन है, जिस पर अनंत तक विमर्श की फ़सल लहलहाती रहेगी।

मृदुला गर्ग की रचनाएँ निजत्व के विस्तार में सहायक हैं। उनके लेखन और व्यक्तित्व के बारे में जो पीत पत्रकारिता हुई; उसके बीच वह लाल कनेर के फूल की तरह नज़र आती हैं, जिस पर साहस और करुणा की बूँदें हैं। 

मृदुला गर्ग ने अपने साहसिक निर्णयों से न केवल साहित्य-संसार में अपनी अलग पहचान बनाई, बल्कि पुरुषवादी क्षेत्र में अपने विचारों से सामाजिक रूढ़ियों को भी चुनौती दी। अपने पहले उपन्यास ‘उसके हिस्से की धूप’ (1975) में ही उन्होंने परंपरागत भारतीय समाज में स्त्री-स्वतंत्रता और मानवीय संबंधों की जटिलताओं को उकेरा। यह उपन्यास स्त्री के आत्म-सम्मान और स्वायत्तता की खोज को दर्शाता है। यह विचार उस समय के लिए क्रांतिकारी था। ‘चित्तकोबरा’ उपन्यास को लेकर कुछ असाहित्यिक लोगों के कारण 1982 में उनकी गिरफ़्तारी हुई और उन पर अश्लील लेखन का आरोप लगा। यह मामला दो साल तक चला, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी यह ज़िद और साहस न केवल उनके लेखन में, बल्कि उनके व्यक्तित्व में भी झलकता है। उनका यह साहस केवल उनके लेखन तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर भी बेबाकी से लिखा।

वर्ष 1980 में प्रकाशित उनका उपन्यास ‘अनित्य’ राजनीतिक विषयों पर आधारित था; जिसे अँग्रेजी में अनुवाद करने में कई बाधाएँ आईं, फिर भी 2010 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने इसे प्रकाशित किया। 

मृदुला गर्ग की लेखनी में स्त्री के अंतर्मन की गहराइयों को उजागर करने की वह क्षमता है, जो सामाजिक बंधनों को तोड़कर असल चेहरा उघाड़ देती है। उनकी रचनाओं में व्यंग्य और सूक्ष्म हास्य का समावेश उनकी लेखनी को अत्यंत प्रभावशाली बनाता है।

इन दिनों देखती हूँ कि तमाम सेंसरशिप और सामाजिक दबावों के बावजूद वह अपनी बात कहती हैं। उनकी पुस्तक ‘वे नायाब औरतें’ में विभिन्न पृष्ठभूमियों की स्त्रियों और कुछ पुरुषों की कहानियाँ हैं, जो उनके समय और समाज को दर्शाती हैं।

मृदुला गर्ग की नायिकाएँ मेरी प्रिय नायिकाएँ हैं—तिलिस्म और मिथ से परे, परंपरागत भूमिकाओं को नकारते हुए—अनेक उतार-चढ़ाव को पार करती हुईं आधुनिक स्त्रियाँ। ये वर्जनाओं का अतिक्रमण करती हुई नायिकाएँ हैं, वैसे ही जैसे उनके कहानी-संग्रह ‘कितनी क़ैदें’ की स्त्री-पात्र।

विभिन्न विषयों पर मृदुला गर्ग का वक्तव्य सुनते हुए मेरे साथ यह अक्सर हुआ है कि मैं तत्कालीन प्रश्नों से सार्वकालिक प्रश्नों की व्याख्या में मौन-यात्रा कर आती हूँ। कसमसाती स्त्री के जीवन के वे सवाल जो बरगद के पेड़ के नीचे तेज़ हवा के चलते साँय-साँय गूँजने लगते हैं, उनका चेतनशील जवाब मृदुला जी के यहाँ स्पष्टता से मिलता है।

वर्जीनिया वुल्फ़ ने ‘ए रूम ऑफ़ वंस ओन’ में स्त्रियों के लिए जिस आर्थिक स्वतंत्रता और बौद्धिक स्वायत्तता की वकालत यह कहते हुए की कि रचनात्मकता के लिए ‘अपना एक कमरा’ और आय आवश्यक है। उस एकांत की बात मृदुला गर्ग भी करती आ रही हैं, यानी एकांत में रचनात्मक और कलात्मक ढंग से आत्माभिव्यक्ति को निर्भीकता से लिख देने की बात... लेकिन यहाँ मृदुला गर्ग के साहित्य में लैंगिक भेदभाव को साहित्यिक और सामाजिक प्रगति के लिए बाधा नहीं मानने की बात पर ज़ोर अधिक है। इसीलिए मृदुला जी का लेखन किसी परंपरा से प्रेरित या आच्छादित नहीं नज़र आता है। उनका कत्थ लीक से बहुत अलग है और समय के खंड में बँधने के लिए बाध्य नहीं है।

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समादृत कथाकार मृदुला गर्ग इस बार के ‘हिन्दवी उत्सव’ में बतौर वक्ता आमंत्रित हैं। ‘हिन्दवी उत्सव’ से जुड़ी जानकारियों के लिए यहाँ देखिए : हिन्दवी उत्सव-2025

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