भीड़ पर कविताएँ

किसी जगह एकत्र लोगों

के तरतीब-बेतरतीब समूह को भीड़ कहा जाता है। भीड़ का मनोविज्ञान सामाजिक मनोविज्ञान के अंतर्गत एक प्रमुख अध्ययन-विषय रहा है। औपचारिक-अनौपचारिक भीड़, तमाशाई, उग्र भीड़, अभिव्यंजक भीड़, पलायनवादी भीड़, प्रदर्शनकर्त्ता आदि विभिन्न भीड़-रूपों पर विचार किया गया है। इस चयन में भीड़ और भीड़ की मानसिकता के विभिन्न संदर्भों की टेक से बात करती कविताओं का संकलन किया गया है।

रामदास

रघुवीर सहाय

बरसात

अशरफ़ अबूल-याज़िद

अनुशासन

सुघोष मिश्र

कनॉट प्लेस

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

थैला

इब्बार रब्बी

कानपुर 2016

गिरिराज किराडू

इस धरती पर

अरुण देव

एकांत-शोर

वीरू सोनकर

जो रही अनकही और अनलिखी

पूरन चंद्र जोशी

गिरोह

शंकरानंद

भीड़

अरमान आनंद

मैंने भीड़ को

पूनम अरोड़ा

सियासत

कृतिका किरण

लगभग अनामंत्रित

अशोक कुमार पांडेय

इत्यादि जन

पूरन चंद्र जोशी

हमने देखा है

राकेश मिश्र

शोर

नेहा अपराजिता

भीड़

नेहा अपराजिता

प्लेटफ़ॉर्म पर

विजय कुमार

जलूस

श्याम परमार

कुर्सी

सरिता सैल

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere