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सिनेमा पर उद्धरण

सिनेमा ऐसा कला-रूप है

जहाँ साहित्य, संगीत, अभिनय, नृत्य जैसे कलासिक कला-रूपों के साथ ही फ़ोटोग्राफी, एनीमेशन, डिजिटल एडिटिंग, ग्राफ़िक्स जैसे अन्य आधुनिक कला-रूप प्रतिबिंबित होते हैं। आधुनिक समाज और सिनेमा का अनन्य संबंध देखा जाता है, जहाँ दोनों एक-दूसरे की प्रवृत्तियों का अनुकरण करते नज़र आते हैं। इस चयन में सिनेमा विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

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फ़िल्मों में आपके पास इतनी गुंजाइश नहीं होती। आप कहानी से दूर नहीं जा सकते, आपको जो कहना है, कहानी के भीतर कहना है। किताब में आप कहानी के दो हिस्‍सों के बीच आसानी से अपनी बात कह सकते हैं, चिंतन कर सकते हैं।

लास्ज़लो क्रास्ज़्नाहोरकाई
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मैं कभी ‘फ़िल्मी’ हीरो नहीं बन सका और बन जाना टालता भी रहा।

अमोल पालेकर
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मैं फ़िल्मों का आदमी नहीं हूँ, क्‍योंकि वह दुनिया मुझे कभी पसंद नहीं रही।

लास्ज़लो क्रास्ज़्नाहोरकाई
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सिनेमा में मेरा करियर स्वायत्तता के प्रति मेरा जुनून प्रतिबिंबित करता है। मैंने हमेशा ही लीक से हटकर काम किया है और जोखिम लेने में पीछे नहीं हटा।

अमोल पालेकर

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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