योग पर सबद

योग षड्दर्शन में से

एक है। इसका अर्थ है समाधि या चित्त-वृत्तियों का निरोध। इसका अर्थ जोड़ या योगफल भी है। ‘गीता’ में योग के तीन प्रकार बताए गए हैं—कर्म, भक्ति और ज्ञानयोग। भक्तिधारा में योग-मार्ग के अनुयायी संतों ने योग पर पर्याप्त बल दिया है। इस चयन में पढ़िए—योग विषयक कविताएँ ।

जो धुनियाँ तौ भी मैं राम तुम्हारा

संत दरिया (मारवाड़ वाले)

धनि-धनि पीव की राजधानी हो

तुरसीदास निरंजनी

गगन तार गनत गइ रतिआ

संत शिवनारायण

साधो एक अचंभा दीठा

संत दरिया (मारवाड़ वाले)

तब हम हरि गुण गावेंगे

हरिदास निरंजनी

मुरली कौन बजावै हो

संत दरिया (मारवाड़ वाले)

गुरु घाट चलो मन भाई

संत शिवदयाल सिंह

करम भरम का किया कलेवा

हरिदास निरंजनी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere