
वस्तुतः मैं अपनी क़लम के माध्यम से सोचता हूँ, क्योंकि मेरे मस्तिष्क को तो बहुधा पता ही नहीं होता कि मेरे हाथ क्या लिख रहे हैं।

बहुत सारी क़लमों की स्याही सही शब्द लिखे जाने की प्रतीक्षा में रुलाई बनकर लीक हो जाती है।

जो लोग कलम का इस्तेमाल करते हैं, वे ख़तरनाक हो सकते हैं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere