किशनचंद 'बेवस' के उद्धरण

जब सच्चाई पर नवीनता का रंग चढ़ता है, उस समय मानो सोने की अंगूठी में कोई हीरा जड़ देता है। कला वही है जो नमूने में नई गठन गढ़ दे, परंतु वाणी में भी प्राचीनता का पाठ पढ़ाए।

मेरा घर भी वहीं है जहाँ पीड़ा का निवास है। जहाँ-जहाँ दुःख विद्यमान है वहाँ-वहाँ मैं विचरता हूँ।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया


तंग मज़हबों में सीमित न हो जाओ। राष्ट्रीयता को स्थान दो। भ्रातृत्व, मानवता तथा आध्यात्मिकता को स्थान दो। द्वैत-भावना की मलिन दृष्टि को त्याग दो- तुम भी रहो, मैं भी रहूँ।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

यदि तुम्हारे पास धन हैं, तो निर्धनों को बाँट दो। यदि धन पर्याप्त नही है तो मन की भेंट दो। यदि मन ठोक नहीं है तो तन अर्पित करो। यदि तन भी स्वस्थ नहीं है तो मीठे वचन ही बोलो। परंतु तुम्हें कुछ न कुछ देना ही है और परोपकार के लिए अवश्य ही स्वयं को न्यौछावर करना है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

हे एकता के देवता! मैं तुम्हारा मंदिर कहाँ पाऊँ? वह हृदय कहाँ है जिसके अंदर एकता का प्रकाश है?

आज वही सारहीन है जिस पर कल आश्चर्य प्रकट किया जा रहा था। जो कल तक ज्ञान समझा जाता था, आज वही अज्ञान माना जा रहा है। कल शायद वह दोषी माना जाएगा, जिसे आज ज्ञान प्राप्त है। वह वस्तु ही कहाँ है जिसमें परिवर्तशीलता न हो?

सारे विश्व में तुम्हारी कठोरता और मेरी विश्वासपात्रता प्रसिद्ध है। परंतु वास्तव में विश्वासपात्रता तुम्हारी है। और कठोरता मेरी।

यह सारा विश्व ही भगवान् का मंदिर है जिसमें प्रभु प्रत्येक के हृदय में विराजमान है। ओ स्रष्टा! प्रत्येक शरीर रूपी मंदिर बना हुआ है।


कभी कुछ न माँगो क्योंकि इस माँग के अंदर ही निकृष्टता के चिह्न हैं। अतः तृष्णा और वासना का नाश कर दो।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

तुम करोड़ों मूक भारतीयों की वाणी हो। तुम्हारी ख़ामोशी तेज़ तूफ़ान का आगमन है। तुम्हारी मुस्कुराहट में पीड़ित हृदयों की कथा समाई हुई है। तुम्हारी ललाट से सत्य के चिह्न प्रकटित हैं।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

अमूल्य हीरे की कनी से वह रक्त-बिंदु अधिक मूल्यवान हैं जो प्रसन्नतापूर्वक दूसरे के पसीने के लिए गिराया जाता है |
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
