धर्म पर कविताएँ

धारयति इति धर्म:—यानी

जिसने सब कुछ धारण कर रखा है, वह धर्म है। इन धारण की जाती चीज़ों में सत्य, धृति, क्षमा, अस्तेय, शुचिता, धी, इंद्रिय निग्रह जैसे सभी लक्षण सन्निहित हैं। धर्म का प्रचलित अर्थ ‘रिलीज़न’ या मज़हब भी है। प्रस्तुत चयन में धर्म के अवलंब पर अभिव्यक्त रचनाओं का संकलन किया गया है।

मारे जाएँगे

राजेश जोशी

महाभारत

अच्युतानंद मिश्र

हाशिए के लोग

जावेद आलम ख़ान

ज़िबहख़ाने

अखिलेश श्रीवास्तव

समय

आशीष त्रिपाठी

औरतें

ली मिन-युंग

अंधा पादरी

याकोव पोलोन्स्की

कैसे

रवि भूषण पाठक

उनकी कृपाएँ

रवि भूषण पाठक

दैवीय-पुकार

श्रीनरेश मेहता

धरम

रमाशंकर यादव विद्रोही

द्रौपदी

कुलदीप कुमार

सुनो भिक्षु

प्रदीप सैनी

तेईस

दर्पण साह

माधवी

सुमन राजे

महाकुंभ

निधीश त्यागी

चुप्पी का समाजशास्त्र

जितेंद्र श्रीवास्तव

मत्स्यगंधा

कुलदीप कुमार

कइसा धरम?

बच्चा लाल 'उन्मेष'

प्यास का मज़हब

आदित्य रहबर

धर्म ख़तरे में

कृतिका किरण

तुम्हारा दिया

पंकज चतुर्वेदी

धर्म और मेरे कैंप के लोग

जयप्रकाश लीलवान

धर्म

अखिलेश श्रीवास्तव

यह हाहाकार का समय है

रमेश प्रजापति

लावारिस

मोहम्मद अनस

धर्म

इमरोज़

विराम-चिह्न

अनादि सूफ़ी

आश्चर्य

अपूर्वा श्रीवास्तव

धर्मयुद्ध

नीरज नीर

अंडा-करी और आस्था

दामिनी यादव

क्रिसमस की शाम

देवेश पथ सारिया

क्या होऊँ

राकेश रंजन

नकार

कुसुमाग्रज

मेरा धर्म

जगदीश चतुर्वेदी

अनभिज्ञता

श्रुति कुशवाहा

नया चाबुक

अनादि सूफ़ी

सत्ताएँ

अनिल मिश्र

हमारा धर्म

मनोहर श्याम जोशी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere