धर्म पर दोहे
धारयति इति धर्म:—यानी
जिसने सब कुछ धारण कर रखा है, वह धर्म है। इन धारण की जाती चीज़ों में सत्य, धृति, क्षमा, अस्तेय, शुचिता, धी, इंद्रिय निग्रह जैसे सभी लक्षण सन्निहित हैं। धर्म का प्रचलित अर्थ ‘रिलीज़न’ या मज़हब भी है। प्रस्तुत चयन में धर्म के अवलंब पर अभिव्यक्त रचनाओं का संकलन किया गया है।
मस्जिद सों कुछ घिन नहीं, मंदिर सों नहीं पिआर।
दोए मंह अल्लाह राम नहीं, कहै रैदास चमार॥
न तो मुझे मस्जिद से घृणा है और न ही मंदिर से प्रेम है। रैदास कहते हैं कि वास्तविकता यह है कि न तो मस्जिद में अल्लाह ही निवास करता है और नही मंदिर में राम का वास है।
जपमाला छापैं तिलक, सरै न एकौ कामु।
मन-काँचे नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु॥
माला लेकर किसी मंत्र-विशेष का जाप करने से तथा मस्तक एवं शरीर के अन्य अंगों पर तिलक-छापा लगाने से तो एक भी काम पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि ये सब तो आडंबर मात्र हैं। कच्चे मन वाला तो व्यर्थ ही में नाचता रहता है, उससे राम प्रसन्न नहीं होते। राम तो सच्चे मन से भक्ति करने वाले व्यक्ति पर ही प्रसन्न होते हैं।
रैदास सोई सूरा भला, जो लरै धरम के हेत।
अंग−अंग कटि भुंइ गिरै, तउ न छाड़ै खेत॥
रैदास कहते हैं कि वही शूरवीर श्रेष्ठ होता है जो धर्म की रक्षा के लिए लड़ते−लड़ते अपने अंग−प्रत्यंग कटकर युद्धभूमि में गिर जाने पर भी युद्धभूमि से पीठ नहीं दिखाता।
सब मज़हब सब इल्म अरु, सबै ऐस के स्वाद।
अरे, इस्क के असर बिन, ये सब ही बरबाद॥
मरनु भलो निज धर्म में, भय-दायक परधर्म।
पराधीन जानै कहा, यह निज-पर कौ मर्म॥
दंभ दिखावत धर्म कौ, यह अधीन मति-अंध।
पराधीन अरु धर्म कौ, कहौ कहा संबंध?
रत्नावलि धरमहि रखत, ताहि रखावत धर्म।
जेहि धरमहि पातति, जेहि धरम को मर्म॥
जो धर्म की रक्षा करते हैं, उनकी रक्षा धर्म करता है जो धर्म को गिरता है, वह स्वयं गिरता है, यही धर्म का रहस्य है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere