एक बार नसीरूद्दीन अपने बहुत पुराने दोस्त जमाल साहब से मिले। अपने पुराने दोस्त से मिलकर वे बड़े ख़ुश हुए। कुछ देर गपशप करने के बाद उन्होंने कहा, “चलो दोस्त, मोहल्ले में घूम आएँ।” जमाल साहब ने जाने से मना कर दिया और कहा, “अपनी इस मामूली सी पोशाक में
एक था राजा। राजा जी लकदक कपड़े पहनकर यूँ तो हज़ारों रुपए ख़र्च करते रहते थे, पर दान के वक़्त उनकी मुट्ठी बंद हो जाती थी। राजसभा में एक से एक नामी लोग आते रहते थे, लेकिन ग़रीब, दुखी, विद्वान, सज्जन इनमें से कोई भी नहीं आता था क्योंकि वहाँ पर इनका बिल्कुल
गर्मी की छुट्टियाँ थीं। दुपहर के समय दिनेश घर में बैठा कोई कहानी पढ़ रहा था। तभी पेड़ के पत्तों को हिलाती हुई कोई वस्तु धम से घर के पीछे वाले बग़ीचे में गिरी। दिनेश आवाज़ से पहचान गया कि वह वस्तु क्या हो सकती है। वह एकदम से उठकर बरामदे की चिक सरका कर
सुनीता सुबह सात बजे सोकर उठी। कुछ देर तो वह अपने बिस्तर पर ही बैठी रही। वह सोच रही थी कि आज उसे क्या-क्या काम करने हैं। उसे याद आया कि आज तो बाज़ार जाना है। सोचते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। सुनीता आज पहली बार अकेले बाज़ार जाने वाली थी। उसने अपनी
एक दिन नसीरूद्दीन अपने दोस्तों के साथ बैठे बतिया रहे थे। बात ही बात में उन्होंने गप्प मारना शुरू कर दिया, “तीरंदाज़ी में मेरा मुक़ाबला कोई नहीं कर सकता। मैं धनुष कसता हूँ, निशाना साधता हूँ और तीर छोड़ता हूँ, शूँ...ऊँ...ऊँ। तीर सीधे निशाने पर लगता है।”
हुदहुद को कलगी कैसे मिली एक बार सुलेमान नाम के बादशाह आकाश में उड़ने वाले अपने उड़नखटोले पर बैठे कहीं जा रहे थे। बड़ी गर्मी थी। धूप से वह परेशान हो रहे थे। आकाश में उड़ने वाले गिद्धों से उन्होंने कहा कि अपने पंखों से तुम लोग मेरे सिर पर छाया कर दो।
पिछली कक्षाओं में तुमने पत्तों से पटाखा बनाया, ग्रीटिंग कार्ड बनाया, काग़ज़ से मुखौटे बनाकर नाटक खेला। आओ, इस बार हम बाजे बनाएँ और तरह-तरह की आवाज़ों का मज़ा लें। जलतरंग— पानी से भरे हुए प्यालों पर लकड़ी की पतली डंडी से चोट करने पर अलग-अलग तरह की आवाज़ें
धनी को पता था कि आश्रम में कोई बड़ी योजना बन रही है, पर उसे कोई कुछ न बताता। “वे सब समझते हैं कि मैं नौ साल का हूँ इसलिए मैं बुद्धू हूँ। पर मैं बुद्धू नहीं हूँ!” धनी मन ही मन बड़बड़ाया। धनी और उसके माता-पिता, बड़ी ख़ास जगह में रहते थे—अहमदाबाद के
पापा जब छोटे थे, तो उनसे अक्सर पूछा जाता था, “बड़े होकर तुम क्या बनना चाहते हो?” पापा के पास जवाब हमेशा तैयार होता। मगर उनका जवाब हर बार अलग-अलग होता था। शुरू-शुरू में पापा चौकीदार बनना चाहते थे। उन्हें यह सोचना बहुत अच्छा लगता था कि जब सारा शहर सोता
बादशाह अकबर अपने मंत्री बीरबल को बहुत पसंद करता था। बीरबल की बुद्धि के आगे बड़े-बड़ों की भी कुछ नहीं चल पाती थी। इसी कारण कुछ दरबारी बीरबल से जलते थे। वे बीरबल को मुसीबत में फँसाने के तरीक़े सोचते रहते थे। अकबर के एक ख़ास दरबारी ख़्वाजा सरा को अपनी
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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