Font by Mehr Nastaliq Web

दर्पण पर कविताएँ

दर्पण, आरसी या आईना

यों तो प्रतिबिंब दिखाने वाला एक उपयोगी सामान भर है, लेकिन काव्यात्मक अभिव्यक्ति में उसका यही गुण विशेष उपयोगिता ग्रहण कर लेता है। भाषा ने आईने के साथ आत्म-संधान के ज़रूरी मुहावरे तक गढ़े हैं। इस चयन में प्रस्तुत है दर्पण को महत्त्व से बरतती कुछ कविताओं का संकलन।

सुबह

यानिस रित्सोस

एक अंधा आदमी

होर्खे लुइस बोर्खेस

दर्पण

ओका मसाफुमि

प्रतिकृति

फेदेरीको गार्सिया लोर्का

दर्पण का धर्म

जार्ज करेरा अन्द्रादे

आईना

फेदेरीको गार्सिया लोर्का

शीशा

मलयज

सिंहावलोकन

एच. एस. शिवप्रकाश

उसने लौटने का...

उदयन वाजपेयी

परकीयाक प्रति

महाप्रकाश

प्रतिबिंब

जगन्नाथ प्रसाद दास

आईना

प्रभात प्रणीत

कहाँ है?

कुमुद पटवा

आईना

चंद्रकुमार

आईने में चिड़िया

दिलीप शाक्य

अफ़सोस-दर्पण

हेमंत शेष

मेरा प्रतिबिंब

सारिका सिंह

आईना

अनुराग अनंत

दर्पण

नरेश अग्रवाल

ओ एल एक्स

दीप्ति कुशवाह

आईने के सामने

अतिया दाऊद

हम सब दर्पण हैं!

मदनलाल डागा

आईना

पुरुषोत्तम शिवराम रेगे

आईना

दर्शन बुट्टर

दुख यदि जाना मेंरा उसने...

ज्ञानराज माणिकप्रभु

आईना

सावित्री राजीवन

चित्सत्ता का अविरत स्पंदन...

ज्ञानराज माणिकप्रभु

टूटा दर्पण...

कन्हैयालाल सेठिया

दर्पण-सी हँसी

सविता सिंह

शक्ल का आईना

जगदीश चतुर्वेदी

आईना

सुनील झा

तुम्हारा आईना

मुसाफ़िर बैठा

जीवाश्म−सा

अनिरुद्ध उमट

संभावित

श्याम परमार

सुगंधें

रुस्तम

आईना

राहुल द्विवेदी

पाँच

अमिताभ चौधरी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए