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दर्पण पर नवगीत

दर्पण, आरसी या आईना

यों तो प्रतिबिंब दिखाने वाला एक उपयोगी सामान भर है, लेकिन काव्यात्मक अभिव्यक्ति में उसका यही गुण विशेष उपयोगिता ग्रहण कर लेता है। भाषा ने आईने के साथ आत्म-संधान के ज़रूरी मुहावरे तक गढ़े हैं। इस चयन में प्रस्तुत है दर्पण को महत्त्व से बरतती कुछ कविताओं का संकलन।

दर्पण दरक गया

राम निहोर तिवारी

आईने अँधरा गए

राम निहोर तिवारी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere