
जो लोग महापुरुष बन गए वे पागल हो सकते हैं।

प्रथम हृदय है, और फिर बुद्धि। प्रथम सिद्धांत और फिर प्रमाण। प्रथम स्फुरणा और फिर उसके अनुकूल तर्क। प्रथम कर्म और फिर बुद्धि। इसीलिए बुद्धि कर्मानुसारिणी कही गई है। मनुष्य जो भी करता है, या करना चाहता है उसका समर्थन करने के लिए प्रमाण भी ढूँढ़ निकालता है।

बुद्धि नहीं आएगी, बुद्धि नहीं आएगी यदि महान संतों की बात नहीं सुनोगे। बुद्धि नहीं आएगी, चाहे अनेक प्रकार की विद्या सीख लो।

पागल बने बिना कोई महान नहीं हो सकता। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि प्रत्येक पागल व्यक्ति महान होता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere