अनहद पर सबद

अनहद का अर्थ अनाहत या

सीमातीत है। इसका अर्थ समाधि की स्थिति में सुनाई पड़ने वाला नाद भी है। कबीर, गुरु नानक, मलूकदास आदि मध्यकालीन भक्त-कवियों द्वारा इस शब्द के प्रयोग ने इसे विशेष लोकप्रिय बनाया है।

हम घरि साजन आए

गुरु नानक

संतो! खेती की रुति आई

हरिदास निरंजनी

जो धुनियाँ तौ भी मैं राम तुम्हारा

संत दरिया (मारवाड़ वाले)

धनि-धनि पीव की राजधानी हो

तुरसीदास निरंजनी

गगन तार गनत गइ रतिआ

संत शिवनारायण

मुरलिया बाज रही

संत शिवदयाल सिंह

धुन-धुन डालूँ अब मन को

संत शिवदयाल सिंह

अनुभव अनहद करै बिचारा

दरिया (बिहार वाले)

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere