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शंकर शैलेंद्र

1923 - 1966 | रावलपिंडी, पंजाब

‘तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत में यक़ीन कर...’ के रचयिता और लोकप्रिय गीतकार। सिनेमा और प्रगतिशील आंदोलन से संबद्ध।

‘तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत में यक़ीन कर...’ के रचयिता और लोकप्रिय गीतकार। सिनेमा और प्रगतिशील आंदोलन से संबद्ध।

शंकर शैलेंद्र के उद्धरण

कल्पना की तुलना में बुद्धि इसी प्रकार है जैसे कर्ता की तुलना में उपकरण, आत्मा की तुलना में शरीर और वस्तु की तुलना में उसकी छाया।

अत्यधिक दुःखी लोग गलती से काव्य-क्षेत्र में जाते हैं। जो वे गीतों में सिखाते हैं, उसे वे दुःखों में सीखते हैं।

कवि का भोजन है प्रेम और यश।

यदि शीत ऋतु गयी है, तो क्या वसंत ऋतु अधिक दूर हो सकती है?

हमारे मधुरतम गीत वे ही होते हैं जो अधिकतम विषादयुक्त विचार व्यक्त करते हैं।

हम भूत और भविष्य को देखते हैं और जो नहीं है उसकी कामना करते हैं। हमारा निष्कपट हास्य भी किसी वेदना से युक्त होता है।

आनंद की भावना! तुम कभी-कभी आती हो।

एक ही नित्य रहता है, अनेक तो परिवर्तित होते हैं और चले जाते हैं। स्वर्गीय प्रकाश नित्य चमकता है, पृथ्वी की छायाएँ उड़ जाती हैं। बहुरंगी शीशे के गुंबद के समान जीवन शाश्वत के शुभ्र प्रकाश को रंग-बिरंगा कर देता है।

ख़ेद है कि तो मेरे पास आशा है, स्वास्थ्य, आंतरिक शांति, बाह्य शांति और ही सब धनों से श्रेष्ठ संतोष, जो कि संत ध्यान में पा लेता है और आंतरिक गौरव का मुकुट धारे भ्रमण करता है।

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