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रस पर उद्धरण

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रस-सामग्री से तो अशिक्षित रुचि भी, किसी-न-किसी तरह स्वाद प्राप्त कर लेती है।

रवींद्रनाथ टैगोर
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छंद ही ऐकांतिक रूप से काव्य हो, ऐसी बात नहीं है। काव्य की मूल वस्तु है रस; छंद आनुषंगिक रूप से इसी रस का परिचय देता है।

रवींद्रनाथ टैगोर
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साहित्य और आर्ट में कोई वस्तु सत्य है या नहीं, इसका प्रमाण मिलता है रस की भूमिका में।

रवींद्रनाथ टैगोर
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साहित्य अपनी चेष्टा को सफल करने के लिए अलंकार, रूपक, छंद, आभास, इंगित का सहारा लेता है। दर्शन विज्ञान के समान निरलंकार होने से उसका काम नहीं चलता।

रवींद्रनाथ टैगोर
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जो भाषा हृदय के बीच अव्यवहित आवेग से प्रवेश नहीं कर पाती, उस भाषा में साहित्य रस, साहित्य रूप की सृष्टि संभव नहीं।

रवींद्रनाथ टैगोर
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अनुभूति के बाहर रस का कोई अर्थ ही नहीं।

रवींद्रनाथ टैगोर
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शांत रस है परिपूर्णता का रस।

रवींद्रनाथ टैगोर
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जिस तरह सात रंगों की किरणें मिलकर श्वेत वर्ण बनता है, उसी तरह चित्त का प्रवाह जब विभिन्न भागों में खंडित होकर, विश्व के साथ अपने अविच्छिन्न सामंजस्य से परिपूर्ण हो जाता है—तब शांतरस का जन्म होता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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