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गंगाधर मेहेर

1862 - 1924 | बारगढ़, ओड़िशा

‘स्वभाव’ कवि’ के रूप में समादृत ओड़िया कवि। प्रकृति और प्रणय संबंधी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।

‘स्वभाव’ कवि’ के रूप में समादृत ओड़िया कवि। प्रकृति और प्रणय संबंधी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।

गंगाधर मेहेर के उद्धरण

मेरा शरीर जलकर अवश्य राख होगा और वृक्षों में खाद के रूप में उपयोगी होगा। जब उस वृक्ष की लकड़ी लेकर बढ़ई अपने कौशल से प्रभु के लिए पादुका बनाएगा, उस समय भी (उसमें स्थित) मुझे प्रभु की पद-सेवा का सौभाग्य मिलेगा ही।

साँप काटे हुए आदमी के मुख में नमक देने पर वह उसे मिट्टी बताता है। इसी प्रकार यदि मूर्ख को यह ज्ञान अमृत तुल्य लगे तो हे जीवन! उसे ज्ञान रूपी बूटी घोल कर पिलाओ।

कुसंग से बढ़कर पाप संसार में नहीं है और कुसंगी के साथ रहने के कारण बहुत दुःख झेलना पड़ता है।

लोग धर्म को मंगलमय कहते हैं परंतु यह कौन जानता है कि 'यम' भी धर्म कहलाता है।

मधुर के साथ मधुर द्रव्य मिल कर मधुमय बन गया। ऐसा संयोग सौभाग्य से ही मिलता है।

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