अज्ञेय के उद्धरण

अकेले बैठना, चुप बैठना—इस प्रश्न की चिंता से मुक्त होकर बैठना कि ‘क्या सोच रहे हो?’—यह भी एक सुख है।
-
संबंधित विषय : एकांत
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया



कपड़े पहनने ही के लिए नहीं हैं—उतार कर रखना भी होता है कि धुल सकें।
-
संबंधित विषय : चीज़ें
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

किसी को ठीक-ठीक पहचानना है तो उसे दूसरों की बुराई करते सुनो। ध्यान से सुनो।
-
संबंधित विषय : निंदा
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

कोई भी मार्ग छोड़ा जा सकता है, बदला जा सकता है : पथ-भ्रष्ट होना कुछ नहीं होता, अगर लक्ष्य-भ्रष्ट न हुए।
-
संबंधित विषय : यात्रा
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

सोचने से ही सब कुछ नहीं होता—न सोचते हुए मन को चुपचाप खुला छोड़ देने से भी कुछ होता है—वह भी सृजन का पक्ष है। कपड़े पहनने ही के लिए नहीं हैं—उतार कर रखना भी होता है कि धुल सकें।
-
संबंधित विषय : सृजन
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

नंगा होने, नंगे हो जाने, नंगा करने में फ़र्क़ है। गहरा फ़र्क़। शिशु और जंतु का नंगा होना सहजावस्था है; आदमी जब नंगा हो जाता है तब वह ग्लानि अथवा अपमान की स्थिति होती है। स्त्री जब नंगी की जाती है तब वह भी अपमान और जुगुप्सा की स्थिति होती है—या आपकी बुद्धि वैसी हो तो हँसी की हो सकती है। स्त्री का लहँगा उतारना, या बंदरिया को लहँगा पहनाना—दोनों इन प्राणियों की प्रकृत परिविष्ट अवस्था को हीन दृष्टि से देखने के परिणाम हैं।
-
संबंधित विषय : चीज़ें
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

दुःख सबको भाँजता है
और—
चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, किंतु जिनको भाँजता है उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

नारी जो कहती है वह उसका अभिप्राय नहीं होता, और जो उसका अभिप्राय होता है, वह कहती नहीं, लेकिन जब भी नारी कुछ कहती है तब उसका कुछ अभिप्राय अवश्य होता है।
-
संबंधित विषय : स्त्री
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

अमेरिकी स्वप्न में 'छोटा' कुछ नहीं हो सकता। यानी जो छोटा है उसे 'छोटा' कहा नहीं जा सकता। अगर आप चूहा-दौड़ में भी हैं, तो संसार की सबसे बड़ी चूहा-दौड़ में हैं, अगर बौने हैं तो भी विराट बौने हैं।

कला सामाजिक अनुपयोगिता की अनुभूति के विरुद्ध अपने को प्रमाणित करने का प्रयत्न अपर्याप्तता के विरुद्ध विद्रोह है।

हम ‘महान साहित्य’ और ‘महान लेखक’ की चर्चा तो बहुत करते हैं। पर क्या ‘महान पाठक’ भी होता है? या क्यों नहीं होता, या होना चाहिए? क्या जो समाज लेखक से ‘महान साहित्य’ की माँग करता है, उससे लेखक भी पलट कर यह नहीं पूछ सकता कि ‘क्या तुम महान समाज हो?’
-
संबंधित विषय : सृजन
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

पश्चिम का कलाकार रूप (फ़ार्म) की खिड़की से देखकर वस्तु को संवेद्य बनाता है, उसका संप्रेषण करता है। भारत का कलाकार प्रतीक की खिड़की से वस्तु को नहीं, वस्तु के पार वस्तु-सत् को संवेद्य बनाता है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया


साहित्य तुम्हारी तुम्हीं से पहचान और गहरी करता है : तुम्हारी संवेदना की परतें उधेड़ता है जिससे तुम्हारा जीना अधिक जीवंत होता है और यह सहारा साहित्य दे सकता है; उससे अलग साहित्यकार व्यक्ति नहीं।
-
संबंधित विषय : सृजन
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

कवि का काव्य ही उसकी आत्मा का सत्य है।

कला में वही यथार्थ है जिससे संबद्ध, संपृक्त हुआ जा सके—संबद्ध यथार्थ ही कला का यथार्थ है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

कला संपूर्णता की ओर जाने का प्रयास है, व्यक्ति की अपने को सिद्ध प्रमाणित करने की चेष्टा है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

जो साहित्य या काव्य अपने समय की चिंताओं को, संदेहों को व्यक्त करता है, मूल्यों का संकट पहचान कर उन नए मूल्यों को पाने को छटपटाता है जो इस संकट के पार बचे रह सकते हैं, वही आज का साहित्य है।
-
संबंधित विषय : सृजन
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया


अगर मैं अपने से बड़े किसी विचार, आदर्श, आइडिया के लिए जीता हूँ तो स्पष्ट है कि मेरा जीवन एक यज्ञ है : उस विचार या आदर्श के लिए अर्पित आहुति मैं हूँ।
-
संबंधित विषय : विचार
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

यह रोज़ का क़िस्सा है। मंत्री महोदय अपनी गणना में यह भूल गए हैं कि उनकी अपनी मीयाद बँधी है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

किसी भी समाज को अनिवार्यतः अपनी भाषा में ही जीना होगा। नहीं तो उसकी अस्मिता कुंठित होगी ही होगी और उसमें आत्म-बहिष्कार या अजनबियत के विचार प्रकट होंगे ही।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

जिस जीवन को उत्पन्न करने में हमारे संसार की सारी शक्तियाँ, हमारे विकास, हमारे विज्ञान, हमारी सभ्यता द्वारा निर्मित सारी शाखाएँ या औजार असमर्थ हैं, उसी जीवन को छीन लेने में, उसी का विनाश करने में, ऐसी भोली हृदयहीनता—फाँसी।
-
संबंधित विषय : जीवन
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया


भाषा कल्पवृक्ष है। जो उससे आस्थापूर्वक माँगा जाता है, भाषा वह देती है। उससे कुछ माँगा ही न जाए, क्योंकि वह पेड़ से लटका हुआ नहीं दीख रहा है, तो कल्पवृक्ष भी कुछ नहीं देता।
-
संबंधित विषय : भाषा
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

हम भाषा को नहीं बनाते, भाषा ही हमको बनाती है। थोड़े से प्रयोजनीय शब्द गढ़ लेना भाषा बनाना नहीं है, वह केवल अपनी सुविधा बनाना है।
-
संबंधित विषय : भाषा
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

वह क्यों चीज़ों को बाहर से छुए जो उनके भीतर से धधक कर उन्हें दीप्त कर देता है?
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

अभिनंदन उस सलीब का होता है जो प्रतीक बन चुका है। और प्रतीक की ढुलाई करने वाला बस उतना ही है—यानी प्रतीक की ढुलाई करने वाला। यह बिल्कुल ‘डिस्पेंसेबल’ है—उसकी जगह कोई दूसरा ले सकता है, क्योंकि प्राणवत्ता तब प्रतीक में जा चुकी है, भारवाही में नहीं।
-
संबंधित विषय : चीज़ें
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

दुःख उसीकी आत्मा को शुद्ध करता है जो उसे दूर करने की कोशिश करता है। शुद्धि दूसरे के साथ दुःखी होने में नहीं; दूसरे के स्थान पर दुःखी होने में है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

दुःख संसर्ग-जन्य है, वह उदात्त और शोधक भी है। दुःख का संसर्ग परवर्ती को भी शुद्ध और उदात्त बनाता है।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया