कल्हण के उद्धरण

संसार में कोई भी ऐसा नहीं है जो नीति का जानकार न हो किंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।
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बालकों व मूर्खों की तो गिनती क्या, महान लोगों की भी चित्तवृत्ति सदा एकाग्र नहीं रहती।
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हाय! कालरूप पाचक हर क्षण प्राणियों के शरीरों में अवस्था परिवर्तन करता रहता है फिर भी उनकी समझ में कुछ नहीं आता।

प्रसिद्धि के इच्छुक, विचार शून्यता के कारण सब ओर दौड़ते हुए मूर्ख लोग पक्षी की तरह ही उपहास योग्य होते

जब धीर व्यक्ति कर्त्तव्य पूर्ण कर विश्राम में मन लगाता है तभी विधाता उसको अन्य महान कार्य भार अर्पित कर देता है।
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नदियों द्वारा समुद्र में डाला गया जल मेघों द्वारा पुनः मिल जाता है परंतु बनिए के घर रखी गई धरोहर फिर नहीं मिलती है।
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जैसे इस आकाश में बादलों के वे ही टुकड़े भिन्न रूप धारण करते हैं—कभी हाथी, कभी चीते, कभी राक्षस, कभी सर्प और कभी अश्व आदि का भ्रम उत्पन्न करते रहते है, उसी प्रकार क्षण-क्षण में विभिन्नता होने के कारण शरीर-धारियों के हृदय में उठने वाली ये विकारों की लहरें, कभी सौम्य और कभी क्रूर विकृतियाँ उत्पन्न करती है।
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जो वस्तु अपनी रक्षा के लिए (उपयोगी) समझी जाती है, (भाग्यवश) उसी से व्यक्ति का नाश हो जाता है।
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जिस प्रकार पापियों का स्पर्श अंगों को दूषित करता है, उसी प्रकार उनका कीर्तन वाणियों को दूषित करता है, अतः उसकी अन्य नृशंसता का वर्णन नहीं किया गया है।
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जैसे वंशी के संपूर्ण छिद्रों में यदि वायु भरी जाए, तो वह कोई शब्द भी नहीं प्रकट कर सकती, उसी प्रकार अनेक मार्गों से संकल्पित विचार अवश्य ही निश्चय को नहीं प्राप्त होता।
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लोग स्त्रियों को पुरुषों का उपकरण (भोग्य वस्तु) मानते हैं। किंतु उनकी यह धारणा मिथ्या है। परिणाम में तो यह देखा जाता है कि पुरुष ही नारियों के हाथ के खिलौने हैं।
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जैसे भस्म हुआ कपूर अपनी सुगंध से जाना जाता है उसी प्रकार प्राणी शरीर के टूक-टूक होकर भस्मावशेषता को प्राप्त होने पर भी, अपनी ख्याति से ही जाना या पहचाना जाता है।
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मेघों से ढँका हुआ सूर्य भी कमलों को विकसित करता है। दूर पर स्थित मेघ भी धूप को शीतल कर देते हैं। इसी प्रकार महान व्यक्तियों की कोई अपूर्व अप्रतिहत शक्ति होती है जिसकी महिमा के वश होकर दूरस्थ कार्य भी बिना विघ्न के पूर्ण हो जाता है।
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चंचल स्वभाव वाली यह संपत्ति जब तक है, तब तक उपकार के लिए यह अवसर प्राप्त है। सदा अभ्युदय प्राप्त करने वाली विपत्ति आने पर पुनः उपकार के लिए अवसर कहाँ से प्राप्त होगा?
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कामधेनु गाय के समान मधुर वाणी किस अनर्थ को नहीं टाल देती है? वह लक्ष्मी का पोषण करती है, कीर्ति को बढ़ाती है, पाप को नष्ट करती है, विरोधियों का भी मित्र बना देती है और पद-पद पर शुद्ध मन के अनुकूल मान से चलती है।
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सत्कर्मों का आचरण करने पर भी पापियों की दोषविकृति (सत्कर्माचरण) में विश्वास नहीं किया जा सकता।
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