संसार के उत्कृष्ट मस्तिष्क वाले संकल्पवान् प्राणी में और एक साधारण मनुष्य में भी जो भेद है, वह मन की शक्तियों के भेद के कारण है।
अपने दिल का कहा मानो, लेकिन अपने दिमाग़ को साथ लेकर चलो।
व्यक्तिगत संपत्ति की शुरुआत उस समय से शुरू हुई जब किसी ने अपना ख़ुद का दिमाग़ रखना शुरू किया।
मन—जिसमें मस्तिष्क और हृदय समाविष्ट हैं—को पूर्ण संगति में होना चाहिए।
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सीमित लोगों से परिचय हो, ज़िंदगी में ख़ुद के लिए वक़्त हो, बिना मतलब दूसरों की दख़लअंदाज़ी न हो, दिमाग़ शांत रहे तो दिल ख़ुश रहता है।
मस्तिष्क में आया हुआ विचार मनुष्य के चरित्र का आरंभ है।
मस्तिष्क के हज़ारों नेत्र होते हैं, और हृदय का एक, परंतु प्रेम के समाप्त होते ही संपूर्ण जीवन का प्रकाश समाप्त हो जाता है।
भाषा मानव मस्तिष्क की वह शस्त्रशाला है जिसमें अतीत की सफलताओं के जयस्मारक और भावी सफलताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह साथ-साथ रहते हैं।
दिमाग़ तो वास्तव में बीमार हो नहीं सकता, संज्ञानात्मक आयाम ही सही या ग़लत; वैध या अवैध हो सकता है, लेकिन बीमार नहीं हो सकता। जो चीज़ बीमार हो सकती है, रोगी हो सकती है—वह मानसिकता है।
जीवन कंटकमय है एवं योवन निरर्थक। और प्रेमी का रुष्ट हो जाना मस्तिष्क में पागलपन का सा काम करता है।
मस्तिष्क—वह यंत्र जिससे हम सोचते हैं कि हम सोचते हैं।
तुम्हारे ज्ञान की क़ीमत तुम्हारे कामों से होगी। सैंकड़ों किताबें दिमाग़ में भर लेने से कुछ लाभ मिल सकता है किंतु उसकी तुलना में काम की क़ीमत कई गुना ज़्यादा है। दिमाग़ में भरे हुए ज्ञान की क़ीमत उसके अनुसार किए गए काम के बराबर ही है। बाक़ी का सब ज्ञान दिमाग़ के लिए व्यर्थ का बोझ है।
बहुत उदरस्थ करने के बजाए, थोड़ा कंठस्थ करना ज़्यादा अच्छा है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere