noImage

लॉर्ड बायरन

1788 - 1824 | लंदन

लॉर्ड बायरन के उद्धरण

मनुष्य का अंतःकरण देववाणी है।

हम बस इतना जानते हैं कि कुछ भी नहीं जाना जा सकता।

अपने प्रथम भावावेश में नारी अपने प्रेमी से प्रेम करती है किंतु अन्यों में वह केवल प्रेम से प्रेम करती है।

आलोचना को छोड़कर हर व्यवसाय सीखने में मनुष्य को अपना समय लगाना चाहिए क्योंकि आलोचक तो सब बने बनाए ही हैं।

झुकने वाला व्यक्ति तड़प सकता है और विद्रोह कर सकता है, पश्चात्ताप तो निर्बल व्यक्ति करते हैं।

संवेदनशील बनो परंतु निर्मल भी। प्रेमी बनो परंतु पवित्र भी।

अपना नाम छपा हुआ देखना निश्चित ही सुखद होता है। पुस्तक तो पुस्तक ही है भले ही उसमें कुछ हो।

Recitation