कवि कर्णपूर के उद्धरण

पवित्र नदियाँ, बिना स्नान किए, अपने दर्शनमात्र से ही दर्शक का मन पवित्र कर देती हैं।
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उपासनीय कौन है? जो सरस है सरस कोन है? जो प्रेम का स्थान है। प्रेम क्या है? जिसमें वियोग न हो। वह वियोग कौन सा है? जिससे प्रेमी जीवित नहीं रहते।
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हे कमलनयनी! मूर्ख व्यक्ति शोक से पीड़ित होकर दुःखी होते रहते हैं परंतु बुद्धिमान लोग अज्ञान को दूर करके आनंदित होते हैं।
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प्राणी मात्र का सुकृत एव दुष्कृत फल से ही प्रगट हो जाता है।
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संबंधित विषय : कर्म
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मधु स्वयं ही मत्त नहीं होता अपितु अपना पान करने वाले सभी जनों को मदमत्त कर देता है।
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प्राणी मात्र को अपनी आत्मा प्यारी लगती है, इसलिए स्वरचित ग्रंथों में उसकी दोषदृष्टि नहीं होती।
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दुष्ट लोग नख और केश के समान ही हैं। जिनके कट जाने पर व्यथा का लेश भी नहीं रहता, जबकि बढ़ने पर सभी दुःखी होते हैं। कौन स्वतंत्र व्यक्ति इनका परित्याग नहीं करते?

हे दुष्ट की जिह्वा रूपी झाड़ू! यद्यपि तुम निरन्तर फेंके हुए मल के द्वारा भुवनतल को निर्मल करती रहती हो, फिर भी तुम्हारे स्पर्श में भय ही होता है।
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