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उपनिषद् पर उद्धरण

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ऐक्य-बोध का उपदेश जिस गंभीरता से उपनिषदों में दिया गया है, वैसा किसी दूसरे देश के शास्त्रों में नहीं मिलता।

रवींद्रनाथ टैगोर
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किसी स्त्री ने न्यायसूत्र या वात्स्यायनभाष्य जैसा कोई शास्त्रग्रंथ रचा हो, ऐसा प्रमाण नहीं मिलता। उपनिषत्काल के बाद शास्त्रार्थ में स्त्री विस्मृत हाशिए पर है। किसी कोने से उसकी आवाज सुनाई देती है, पर वह जब कभी अपने अवगुंठन से बाहर निकल कर आती है तो एक विकट चुनौती सामने रखती है और दुरंत प्रश्न उठाती है।

राधावल्लभ त्रिपाठी
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डर यही है कि अपनी श्रेष्ठता, पुण्य या धन के अभिमान से हमारा दान अपमानित हो, अधर्म में परिणत हो। इसीलिए उपनिषद् में कहा है ‘भ्रिया देयम्’—भय करते हुए दान दो।

रवींद्रनाथ टैगोर
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उपनिषद् भारतीय ब्रह्मज्ञान की वनस्पति है।

रवींद्रनाथ टैगोर
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सत्य ही मनुष्य का प्रकाश है। इस सत्य के विषय में उपनिषद् का कहना है : 'आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति।'

रवींद्रनाथ टैगोर
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बृहदारण्यक उपनिषद् में; याज्ञवल्क्य के साथ जनक की सभा में, उस समय के सबसे बड़े ज्ञानियों के साथ बहस को गार्गी ने ब्रह्मोद्य कहा है।

राधावल्लभ त्रिपाठी
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गार्गी ब्रह्मवादिनी थी। उपनिषदों में ही स्त्रियाँ ब्रह्मवादिनी हुआ करती थीं।

राधावल्लभ त्रिपाठी
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उपनिषदों के काल के ब्रह्मज्ञानी, किसी महिला से यह कहने की बात कभी मन में भी लाते कि हे अबले! यशस्वी लोग महिलाओं से वाद नहीं करते।

राधावल्लभ त्रिपाठी
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याज्ञवल्क्य की वाणी में ज्ञान की गरिमा ही नहीं, तपे हुए अनुभव का सच भी था।

राधावल्लभ त्रिपाठी
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कभी-कभी यह भी हुआ कि परवर्ती ग्रंथकारों ने किसी विचारधारा विशेष या संप्रदाय विशेष के प्रचार के लिए ग्रंथ लिखा और उसे लोकप्रिय बनाने के लिए उपनिषद् का नाम दे दिया।

राधावल्लभ त्रिपाठी
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संहिता, ब्राह्मण और आरण्यकों से सीधे संबंध को देखते हुए बारह उपनिषद् प्राचीन और प्रामाणिक कहे जा सकते हैं।

राधावल्लभ त्रिपाठी
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उपनिषद् बोलचाल की भाषा में जीवन के गूढ़ रहस्यों का निरूपण करते हैं।

राधावल्लभ त्रिपाठी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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