
पाणिनि के सामने संस्कृत वाङ्मय और लोक-जीवन का बृहत् भंडार फैला हुआ था। वह नित्य प्रति प्रयोग में आनेवाले शब्दों से भरा हुआ था। इस भंडार में जो शब्द कुछ भी निजी विशेषता लिए हुए था, उसी का उल्लेख सूत्रों में या गणपाठ में आ गया है।

पाणिनि ने जब व्याकरणशास्त्र की रचना करने की बात सोची, तो उन्होंने घूम-घूमकर शब्द-सामग्री का संकलन किया, और जो देश की भिन्न-भिन्न राजधानियाँ या प्रसिद्ध स्थान थे, उनमें जाकर उन्होंने उच्चारण, अर्थों, शब्दों, मुहावरों और धातुओं के विषय में अपनी सामग्री का संकलन किया।

श्युआन च्वाङ नामक चीनी यात्री सम्राट; हर्ष के समय सातवीं शताब्दी में भारत में आया था। वह चीन से मध्य-एशिया और गंधार देश के रास्ते से यहाँ आया। सिंधु नदी के समीप शलातुर गाँव में जाकर उसने जो कुछ वहाँ सुना और देखा, उसका वर्णन अपने यात्रा-ग्रंथ में लिखा है—"यह स्थान ऋषि पाणिनि का जन्मस्थान है। जहाँ वे उत्पन्न हुए थे, वहाँ उनकी मूर्ति बनी है। यहाँ के लोग पाणिनि के शास्त्र का अब भी अध्ययन करते हैं। इसी कारण यहाँ के मनुष्य अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक प्रतिभाशाली और विद्वान् है।"
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पतंजलि के महाभाष्य से पता चलता है कि पाणिनि अत्यंत बुद्धिशाली आचार्य थे।

सूत्र-साहित्य की एक विशेष प्रकार की शैली है। यह शैली केवल भारतवर्ष में ही मिलती है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere