दुख पर गीत

दुख की गिनती मूल मनोभावों

में होती है और जरा-मरण को प्रधान दुख कहा गया है। प्राचीन काल से ही धर्म और दर्शन ने दुख की प्रकृति पर विचार किया है और समाधान दिए हैं। बुद्ध के ‘चत्वारि आर्यसत्यानि’ का बल दुख और उसके निवारण पर ही है। सांख्य दुख को रजोगुण का कार्य और चित्त का एक धर्म मानता है जबकि न्याय और वैशेषिक उसे आत्मा के धर्म के रूप में देखते हैं। योग में दुख को चित्तविक्षेप या अंतराय कहा गया है। प्रस्तुत संकलन में कविताओं में व्यक्त दुख और दुख विषयक कविताओं का चयन किया गया है।

हड्डियों का पुल

देवेंद्र कुमार बंगाली

आत्मसंलाप

रामेश्वर शुक्ल अंचल

इस पथ से आना

महादेवी वर्मा

अबूझ पहेली

विनम्र सेन सिंह

दुखता रहता है अब जीवन

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

उदासी

विनम्र सेन सिंह

सुख का दिन डूबे डूब जाए

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

जितना दुख देता है

विनोद श्रीवास्तव

जो न समझ सका

रमानाथ अवस्थी

विषाद

जयशंकर प्रसाद

मूल्य और संघर्ष में

राघवेंद्र शुक्ल

अँधियारा

अन्नू रिज़वी

अध्यात्म-फल

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

अनमिल-अनमिल मिलते

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere