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दुख पर कविताएँ

दुख की गिनती मूल मनोभावों

में होती है और जरा-मरण को प्रधान दुख कहा गया है। प्राचीन काल से ही धर्म और दर्शन ने दुख की प्रकृति पर विचार किया है और समाधान दिए हैं। बुद्ध के ‘चत्वारि आर्यसत्यानि’ का बल दुख और उसके निवारण पर ही है। सांख्य दुख को रजोगुण का कार्य और चित्त का एक धर्म मानता है जबकि न्याय और वैशेषिक उसे आत्मा के धर्म के रूप में देखते हैं। योग में दुख को चित्तविक्षेप या अंतराय कहा गया है। प्रस्तुत संकलन में कविताओं में व्यक्त दुख और दुख विषयक कविताओं का चयन किया गया है।

सरोज-स्मृति

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

मैं गाँव गया था

शरद बिलाैरे

कोई दुःख

कुँवर नारायण

दुख ने मुझको

केदारनाथ अग्रवाल

ख़ाली आँखें

नवीन रांगियाल

बुख़ार में कविता

श्रीकांत वर्मा

मणिकर्णिका का डोम

श्रीकांत वर्मा

अँधेरे का सौंदर्य-2

घुँघरू परमार

अक्सर एक व्यथा

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

बीते हुए दिन

राजेंद्र धोड़पकर

अजनबी शहर में

संजय कुंदन

मर्सिया

अंचित

उसी शहर में

ध्रुव शुक्ल

कजरी के गीत मिथ्या हैं

मनीष कुमार यादव

पिता

नवीन रांगियाल

?

गगन गिल

आत्म-मृत्यु

प्रियंका दुबे

उड़ गई माँ

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

बारामासा

यतींद्र मिश्र

बेटे के लिए

युआन गेलमान

बहनें

असद ज़ैदी

बाहर बारिश

अविनाश मिश्र

दुःख से कैसा छल

ज्याेति शोभा

टूटी नाव

गोविंद निषाद

शोक

आशुतोष कुमार

उपला

नवीन रांगियाल

शोक

अम्बर पांडेय

असहनीय

वियोगिनी ठाकुर

अनचाहा

अमर दलपुरा

घर जाने में

पंकज प्रखर

अब पानी बरसेगा तो

सौम्य मालवीय

यह उस रात की कहानी है

प्रदीप अवस्थी

मैंने जीवन वरण कर लिया

कृष्ण मुरारी पहारिया

कभी-कभी ऐसा भी होता है

पंकज चतुर्वेदी

बहन

विजय राही

रेलपथ

बेबी शॉ

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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