शृंगार पर सवैया

सामान्यतः वस्त्राभूषण

आदि से रूप को सुशोभित करने की क्रिया या भाव को शृंगार कहा जाता है। शृंगार एक प्रधान रस भी है जिसकी गणना साहित्य के नौ रसों में से एक के रूप में की जाती है। शृंगार भक्ति का एक भाव भी है, जहाँ भक्त स्वयं को पत्नी और इष्टदेव को पति के रूप में देखता है। इस चयन में शृंगार विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

येई हैं वे बृजभानुसुता

ठाकुर बुंदेलखंडी

पिंडली वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

केश वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

हाथ छ-सात फिरै मग में

बेनी बेंतीवाले

सीस पै पाग पराग भरी अनुराग

लालबिहारी मिश्र 'द्विजराज'

फरकै लगी खंजन सी अँखियाँ

लालबिहारी मिश्र 'द्विजराज'

मति मंद गयंदन मंद किये

लालबिहारी मिश्र 'द्विजराज'

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere