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शृंगार पर पद

सामान्यतः वस्त्राभूषण

आदि से रूप को सुशोभित करने की क्रिया या भाव को शृंगार कहा जाता है। शृंगार एक प्रधान रस भी है जिसकी गणना साहित्य के नौ रसों में से एक के रूप में की जाती है। शृंगार भक्ति का एक भाव भी है, जहाँ भक्त स्वयं को पत्नी और इष्टदेव को पति के रूप में देखता है। इस चयन में शृंगार विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

कहती राधिका अहीर

परमानंद दास

दोऊ भया घुटुरुवन चलत

गोस्वामी हरिराय

हौं बलि जाऊँ, मुख सुख-रास

चाचा हितवृंदावनदास

सोभा केहि बिधि बरनि सुनाऊँ

चाचा हितवृंदावनदास

झूलत राधिका रस भरी

गोविंद स्वामी

आवैगी मेरी बलाय

गोस्वामी हरिराय

दूलह दुलहिन अधिक बनी

गोस्वामी हरिराय

बिलावल

सूरदास मदनमोहन

तव तें रूप ठगौरी परी

गोविंद स्वामी

हरि मुख देख बाबा नंद

गोस्वामी हरिराय

रसिक कुँवरि बलि जाऊँ

गोविंद स्वामी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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