शृंगार पर कवित्त

सामान्यतः वस्त्राभूषण

आदि से रूप को सुशोभित करने की क्रिया या भाव को शृंगार कहा जाता है। शृंगार एक प्रधान रस भी है जिसकी गणना साहित्य के नौ रसों में से एक के रूप में की जाती है। शृंगार भक्ति का एक भाव भी है, जहाँ भक्त स्वयं को पत्नी और इष्टदेव को पति के रूप में देखता है। इस चयन में शृंगार विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

संपूर्ण मूर्त वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

पग नख वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

घुँघरू वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

पलक वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere