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कृपाराम खिड़िया

कुचामन, राजस्थान

रीतिकाल के नीतिकवि। हिंदी के पहले संबोधन काव्य के रचयिता। 'राजिया' को संबोधित सोरठों के लिए समादृत।

रीतिकाल के नीतिकवि। हिंदी के पहले संबोधन काव्य के रचयिता। 'राजिया' को संबोधित सोरठों के लिए समादृत।

कृपाराम खिड़िया के उद्धरण

जिस गाँव में गुण-अवगुण को सुनने समझने वाला कोई नहीं है और जहाँ अराजकता फैली हुई है, हे राजिया! वहाँ रहना कठिन है।

मुख से मीठा बोलते हैं पर हृदय से बुराई करते रहते हैं। हे राजिया! ऐसे लोगों से कभी संपर्क नहीं रखना चाहिए।

हे राजिया! यदि सिंह मर भी जाए तो भी वह मिट्टी या घास नहीं खाता।

कस्तूरी बहुत काली और करूप होती है पर काँटे पर तोली जाती है। परंतु हे राजिया! शक्कर बहुत सुंदर होने पर भी पत्थरों से तोली जाती है।

गंभीर हाथी मदमस्त होकर अपनी मौज से चला जा रहा है। हे राजिया! कुत्ते क्यों रो-रोकर भौंकते है?

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