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भारवि

भारवि के उद्धरण

जब जितेंद्रियता ही अपनी रक्षा करे तो शत्रु जीत नहीं सकता।

ऐसे लोग बहुत ही कठिनाई से मिलते हैं, जो कार्य विधि का चारुतापूर्वक निर्माण करते हैं।

भय से संतप्त मन कठिनाइयों में मोहित हो ही जाता है।

परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है।

निष्काम होकर नित्य पराक्रम करने वालों की गोद में उत्सुक होकर सफलता आती ही है।

आत्मज्ञानियों के लिए कौन-सी वस्तु दुःखकारक है।

यदि नीच के साथ शत्रुता करते हैं तो उसका यश नष्ट होता है, मैत्री करते हैं तो उनके गुण दूषित होते हैं, इसलिए विचारशील मनुष्य स्थिति की दोनों प्रकार से समीक्षा करके ही नीच व्यक्ति को अवज्ञापूर्वक दूर ही रखते हैं।

राग और द्वेष से दूषित स्वभाव वाले लोगों के मन सज्जनों के विषय में भी विकारपूर्ण हो जाते हैं।

दुर्भाग्यशाली मनुष्य प्राप्त वस्तु की अवहेलना करते हैं।

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