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भारवि

भारवि की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 21

काम अर्थात् विषय-भोगों से श्रद्धा करो तो वे ठगते हैं। प्रेम करो तो वे हानि पहुँचाते हैं। छोड़ना चाहो तो छूटते नहीं। वे कष्टप्रद शत्रु हैं।

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जब जितेंद्रियता ही अपनी रक्षा करे तो शत्रु जीत नहीं सकता।

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ऐसे लोग बहुत ही कठिनाई से मिलते हैं, जो कार्य विधि का चारुतापूर्वक निर्माण करते हैं।

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बंधु के अपरिचित होने पर भी उसके मिलन पर चित्त प्रसन्न होता है।

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भय से संतप्त मन कठिनाइयों में मोहित हो ही जाता है।

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