noImage

चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य

1878 - 1972 | तमिलनाडु

चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य के उद्धरण

अनुभव और दंड ऐसी सीख देते हैं जो अन्य उपायों से संप्रेषित नहीं होती।

समाज धर्म के कारण से संगठित रहते हैं चाहे लोग उसका (धर्म का प्रदर्शन करें या उसे अपने हृदय में रखें। जब धर्म समाप्त हो जाता है तब पारस्परिक विश्वास भी नष्ट हो जाता है, लोगों का आचरण भ्रष्ट हो जाता है और उसका फल राष्ट्र को भुगतना पड़ता है। धर्म सुलाने वाला नहीं है अपितु शक्ति का आधार-स्तंभ है।

अच्छी पुस्तक पढ़ने के बाद आप सदैव मनोवृत्ति के उन्नयन के साथ उठते हैं।

आत्म-संयम अर्थात् आत्मानुशासन ही कलात्मक सौंदर्य को सुंदर एवं व्यवस्था को सुव्यवस्थित और आनंददायक बनाता है।

Recitation