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अर्थ पर उद्धरण

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‘यह सुरक्षित कुसुम ग्रहण करने योग्य है; यह ग्राम्य है, फलतः त्याज्य है; यह गूँथने पर सुंदर लगेगा; इसका यह उपयुक्त स्थान है और इसका यह’—इस प्रकार जैसे पुष्पों को भली-भाँति पहचानकर माली माला का निर्माण करता है, उसी प्रकार सजग बुद्धि से काव्यों में शब्दों का विन्यास करना चाहिए।

भामह
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सत्यकाव्य का प्रणयन पुरुषार्थचतुष्टय एवं कलाओं में निपुणता, आनंद और कीर्ति प्रदान करता है।

भामह
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शब्द और अर्थ दोनों मिलकर ही काव्य कहलाते हैं। यह काव्य दो प्रकार का होता है : गद्य और पद्य। संस्कृत, प्राकृत और इनसे भिन्न अपभ्रंश—भाषा के आधार पर यह तीन प्रकार का होता है।

भामह
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जिसका अर्थ विद्वानों से लेकर स्त्रियों और बच्चों (जनसाधारण) तक, सभी को प्रतीत हो जाए, वह प्रसाद गुण कहलाता है।

भामह
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एक भी दोषपूर्ण शब्द का प्रयोग होने पाए—इसका सदैव ध्यान रखना चाहिए।

भामह
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शब्दालंकार शब्द के शोभाधायक होते हैं और अर्थालंकार अर्थ के। चूँकि शब्द और अर्थ दोनों मिलकर ही काव्य होते हैं, इसलिए हमें तो शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों ही इष्ट हैं।

भामह
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जिसका अर्थ ओझल हो गया हो, उसे अपार्थ दोष कहते हैं। वह अर्थ पद और वाक्य दोनों में रहता है।

भामह
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अर्थवान् वर्णसमूह ही पद कहा जाता है। व्याकरण में सुबंत और तिङन्त को पद कहा जाता है।

भामह
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परस्पर साकांक्ष पदों का समूह ही वाक्य कहलाता है जो स्वयं निराकांक्ष तथा एक अर्थ का बोधक होता है।

भामह

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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