हिंदी ने जिनकी ज़िंदगी बदल दी—मारिया नेज्यैशी
वह दिल्ली के सर्द जाड़ों की कोई आम सुबह ही थी जब जनपथ स्थित हंगेरियन सूचना एवं सांस्कृतिक केंद्र की जनसंपर्क अधिकारी हरलीन अहलूवालिया का फ़ोन आया। हरलीन मुझे हंगरी की एक अँग्रेज़ हिंदी महिला विद्वान से मिलवाना चाहती थीं, जिन्हें हिंदी में किए गए उनके
जय प्रकाश पांडेय
डाकिए की कहानी, कँवरसिंह की ज़ुबानी
शिमला की माल रोड पर जनरल पोस्ट ऑफ़िस है। उसी पोस्ट ऑफ़िस के एक कमरे में डाक छाँटने का काम चल रहा है। सुबह के 11:30 बजे हैं, खिड़की से गुनगुनी धूप छनकर आ रही है। इस धूप का मज़ा लेते हुए दो पैकर और तीन महिला डाकिया फटाफट डाक छाँटने का काम कर रहे हैं। वहीं
प्रतिमा शर्मा
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere