Font by Mehr Nastaliq Web
noImage

संत एकनाथ

1533 - 1599

मराठी संत, तत्त्वज्ञ और कवि। विट्ठल के भक्त। वारकरी आंदोलन में योगदान।

मराठी संत, तत्त्वज्ञ और कवि। विट्ठल के भक्त। वारकरी आंदोलन में योगदान।

संत एकनाथ के उद्धरण

श्रेणीबद्ध करें

यह सब संसार असार क्षणिक है। पक्षी आँगन में दाना चुगने के लिए आते हैं और चुग कर उड़ जाते हैं।लड़कियाँ घरौंदे बनाती हैं, गुड्डों-गुड़ियों के विवाह करती हैं और फिर सब खिलौनों को तोड़ डालती हैं। यात्री आकर किसी वृक्ष के नीचे रात को विश्राम लेते हैं और प्रातःकाल होते ही उठकर चले जाते हैं। मार्ग में बहुत से लोगों से भेंट होती है परंतु इन लोगों से कोई मोह या संबंध नहीं जोड़ता। इसी प्रकार जब तक इस संसार में प्रारब्धानुसार जीवित रहता है तब तक उदासीन अलिप्त रहना चाहिए।

पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं।

जागृति का जो विस्मरण है वही स्वप्नसृष्टि का विस्तार है। वस्तु से विमुख जो अहंकार है वही त्रिगुणात्मक संसार है।

धन जोड़कर भक्ति का दिखावा करने से कोई लाभ नहीं क्योंकि ऐसा करने से मन में वासना और भी बढ़ती जाएगी। जिनका चित्त वासनाओं में फँसा हुआ है, उन्हें अंतरात्मा के दर्शन कैसे हो सकते हैं?

वाणी से राम नाम लेते हुए यदि मन विषय की ओर दौड़े तो इसे भगवान का स्मरण नहीं वरन् विस्मरण समझना चाहिए।

भौतिकवाद की पराकाष्ठा सर्वहितकारी सद्भाव में, अध्यात्मवाद की पराकाष्ठा सर्वात्मभाव में और विश्वास की पराकाष्ठा प्रभु की प्रसन्नना में निहित है।

प्रेम के बिना श्रुति, स्मृति, ज्ञान, ध्यान, पूजन, श्रवण, कीर्तन सब व्यर्थ है।

आत्मस्वरूप को भूलकर जो अहंभाव उठता है वही अहंकार है, जो विकार से त्रिगुण को क्षुब्ध करता है।

यदि कोई मनुष्य सब वर्गों में अग्रगण्य हो परंतु भगवान् के चरणों से विमुख हो तो उससे वह चांडाल श्रेष्ठ है जो भगवान् के भजन का प्रेमी है।

सहज अनुकंपा से प्राणियों के साथ अन्न, वस्त्र, दान मान इत्यादि से प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। यही सब का स्वधर्म है।

मुझे लोभ रूपी सर्प ने डस लिया है और स्वार्थ रूपी संपत्ति से मेरे पैर भारी हो गए हैं। आशा रूपी तरंगों ने मेरे शरीर को तपा डाला है। और गुरुकृपा से संतोषरूपी वायु शीतलता प्रदान कर रहा है। मुझे विषयरूप नीम मीठा लगता है और भजनरूपी मधुर गुड़ कड़वा लग रहा है।

वस्तु की ममता लोभ में और व्यक्तियों की ममता मोह में आबद्ध करती है।

भगवद्-भजन से प्रेम करने वाला चांडाल उत्तम वर्ग के उस मनुष्य से श्रेष्ठ है जो प्रभु के चरणों से विमुख हो।

Recitation