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रघुनाथ चौधरी

1879 - 1967 | नलबाड़ी, असम

‘बिहगी कवि’ के रूप में समादृत असमिया कवि-लेखक-संपादक। प्रकृति-विषयक कविताओं के लिए उल्लेखनीय।

‘बिहगी कवि’ के रूप में समादृत असमिया कवि-लेखक-संपादक। प्रकृति-विषयक कविताओं के लिए उल्लेखनीय।

रघुनाथ चौधरी के उद्धरण

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स्त्रियाँ कभी क्रूरता पर नहीं रोतीं। वे दूसरों के दिए दर्द पर नहीं रोतीं। रोने के लिए उनका अपना दर्द ही काफ़ी होता है।

जानवर इंसानों जितने बुद्धिमान नहीं होते, इसलिए उन्होंने छिपने की कला नहीं सीखी है। लेकिन मनुष्य में और उनमें बुद्धि को छोड़कर बाक़ी सभी चीज़ें समान स्तर की होती हैं। उन्होंने अपनी कुटिल बुद्धि से वितरण की व्यवस्था बनाकर अपने पशुवत कर्मों को छुपाने के लिए सुरक्षित अंधकार पैदा कर लिया है।

पहली नज़र को प्रेम मानकर समर्पण कर देना भी पागलपन है।

संतोष की भाषा धीमी होती है, क्योंकि वह शब्दों और मौन दोनों में व्यक्त होती है।

शांति और मौन का अर्थ है—शोर का अभाव, यानी वास्तव में एक बेचैन करने वाली शांति।

मनुष्य के लालच और आत्मघात का ज़हर धरती के केंद्र में काफ़ी जमा हो चुका है।

एक ज़िंदगी किनारे की भी होती है, जो बह जाने वाले को भीगी आँखों से देखती है।

कुछ भी इतना मधुर नहीं होना चाहिए कि सुनते ही नींद जाए और इतना प्रेरक भी नहीं कि समझने पर वैराग्य जाए।

मुग्धता एक भ्रामक तत्त्व है।

स्थिरता और जड़ता के बीच भी कोई स्थिति होनी चाहिए।

शरीर अंततः अवास्तविक है।

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हुए बिना या हो जाने के अलावा अब हमसे कुछ हो भी नहीं सकता है।

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