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प्रयाग शुक्ल की चित्रकला : रंगों में बसी संवेदनाएँ

5 अक्टूबर को आर्ट स्पेस, भोपाल में प्रयाग शुक्ल की एकल चित्रकला प्रदर्शनी ‘Myriad Hues’ का स्नेहिल शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर छाया दुबे, हंसा मिलन कुमार, साधना शुक्ला और प्रीति पोद्दार जैन की समूह प्रदर्शनी भी प्रदर्शित की गई। इस ख़ास शाम की शुरुआत शम्पा शाह के प्रेरणादायक वक्तव्य से हुई, जिसमें उन्होंने कला की गहराई और आवश्यकता पर विचार किए।

मिरियड ह्यू (Myriad Hues): एक अद्भुत कला-यात्रा का शुभारंभ

भोपाल के ‘आर्ट स्पेस’ में वरिष्ठ कवि, साहित्यकार और कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल की चित्रकला प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह की शाम सभी आगंतुकों के लिए एक गहरी और संवेदनशील यात्रा की तरह रही। एक साहित्यकार, कवि, कथाकार और कला-समालोचक के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले प्रयाग शुक्ल को एक सृजनशील चित्रकार के रूप में देखना मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से अत्यधिक प्रेरणादायक था। उनकी कला के इस नए रूप में जुड़ना, उनकी सृजन प्रक्रिया को सुनना और उनके विचारों को महसूस करना अपने आप में एक गहन अनुभव रहा।

उन्होंने कविता, कहानी, संस्मरण, और कला समीक्षाओं में अपनी विशेष छाप छोड़ी है, लेकिन इस बार उनका एक और पहलू देखने को मिला—‘एक चित्रकार, जो रंगों और रूपों से संवाद करता है।’

प्रयाग शुक्ल ने प्रदर्शनी की शुरुआत करते हुए सभी को बताया कि किस तरह कोरोना काल के दौरान उनकी कलादृष्टि ने एक नया मोड़ लिया। लॉकडाउन के सूने और एकाकी समय और असमय बेटी के बिछोह से जूझते आंतरिक संवादों ने उन्हें गहरे सृजन में डुबो दिया। उन्होंने कहा —“उस वक़्त जब लिखने की कोशिश में काग़ज़ पर कोई शब्द नहीं उतरते थे, वाक्य नहीं बनते थे। तब मैंने महसूस किया कि जब भी मैं कुछ लिखने बैठता, तो वह अधूरे अक्षर फूल-पत्तियों में बदल जाते। उन दिनों जब भी काग़ज़ पर कुछ बनाता, उसमें बेटी की झलक नज़र आती। यूँ धीरे-धीरे काग़ज़ पर चित्र बनने लगे और जब मैंने रंगों का प्रयोग शुरू किया तो वही चित्र अधिक परिपूर्ण दिखाई देने लगे। फिर वह सिलसिला बिना रुके चलता गया।”

यहाँ एक कला विद्यार्थी होने के नाते, मैंने देखा कि एक लेखक और कवि से चित्रकार बने प्रयाग शुक्ल के लिए चित्रकला मात्र एक माध्यम नहीं रही, बल्कि उनके जीवन के एक विशेष समय का सृजनात्मक उत्तर बनकर सामने आई। ये दौर उनके सृजन का सफ़र था, जिसमें उन्होंने न केवल अपनी कल्पनाओं को रंगों में ढाला, बल्कि बहता हुआ समय, संवेदनाएँ और मनोभाव भी उनके चित्रों का हिस्सा बनते चले गए। 

जब उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान किस तरह अपने घर में उपलब्ध सारे रंग, काग़ज़ और सामग्री ख़त्म हो जाने के बाद उन्होंने अपने मित्रों से संपर्क कर नई सामग्री जुटाई। तब उनकी चित्रों के प्रति उत्कंठा मुझे चकित करती चली गई और उनकी सृजनात्मक प्रक्रिया अनवरत चलती रही।

उनके चित्रों से बार-बार गुज़रते हुए मुझे महसूस हुआ कि उनके चित्र अपने आप में एक कथा सुनाते हैं—रंगों, आकृतियों और भावनाओं की कथा। कथा में छितरे हुए रंग और मुक्त रूप एक अनोखी संवादधर्मिता रचते हैं। वह कहते हैं — “मैंने ख़ुद को किसी एक माध्यम में सीमित नहीं किया। जो भी रंग, इंक, या काग़ज़ मुझे उपलब्ध होता है, वही मेरे रचनात्मक प्रयोग का हिस्सा बनता चला जाता है।” यह अनायास सृजन की प्रक्रिया ही उनके चित्रों को विशेष बनाती है। 

उनके लिए कला एक पूर्व निर्धारित योजना नहीं, बल्कि एक जीवंत और निरंतर प्रवाह है, जो उनके जीवन-दर्शन का भी एक गहरा प्रतिबिंब भी है। उनके चित्र सिर्फ़ रंगों की अभिव्यक्ति नहीं हैं, वे उनके भीतर की भावनाओं, दुखों और प्रेम की कहानी कहते हैं। यह स्पष्ट है कि शब्दों से आगे बढ़कर अब रंगों और आकृतियों के माध्यम से वह स्व-संवेदन और सृजनात्मकता को व्यक्त कर रहे हैं।

मुझे यह भी लगता है कि उनके लिए चित्रकला अब केवल एक कला का माध्यम नहीं है, बल्कि एक आत्मिक शरणस्थली बन गई है, जहाँ वह अपने भीतर की गहन भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं। उनके चित्रों में उन अदृश्य भावनाओं की भी झलक मिल रही है, जो संभवतः शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं हो सकीं।

प्रयाग शुक्ल के चित्र उनकी बेटी के प्रति उनके प्रेम, संवेदना और उस अटूट सृजनात्मक ऊर्जा का प्रतीक हैं, जो जीवन की कठिनाइयों के बावजूद भी उन्हें प्रेरित करती रही। उनके चित्रों को देखते हुए, यह महसूस होता है कि सृजन की कोई सीमा नहीं होती। चाहे वह शब्दों में हो या रंगों में, हर कलाकार के भीतर एक ऐसा संसार होता है, जो उसे जीवन की कठिनाइयों से उबारता है और उसे नया दृष्टिकोण प्रदान करता है।

प्रयाग शुक्ल के चित्रों की यह प्रदर्शनी मेरे लिए सिर्फ़ एक कला आयोजन नहीं रही, मुझे यह एक संवेदनशील आत्मा के भीतर की यात्रा का दृश्यांकन प्रतीत हुई, जो शब्दों की जगह रंगों से ख़ुद को व्यक्त कर रही है। यह प्रदर्शनी उस कलाकार की रचनात्मक यात्रा का दस्तावेज़ है, जो अपनी व्यक्तिगत त्रासदी से उभरते हुए, नए रूप में सामने आया है।

प्रयाग शुक्ल की चित्रकला : प्रकृति की खिड़कियों से झाँकता संवाद

प्रयाग शुक्ल के चित्रों को देखने पर मुझे सबसे पहली अनुभूति जो हुई, वह एक ऐसे संसार की है, जहाँ प्रकृति की भरपूर उपस्थिति है। मानो उनका हर चित्र एक खिड़की है। खिड़की के उस तरफ़ उनका कला में गहरे डूबा हुआ मन पत्तियों के रूप में उभरता है, जो मात्र वनस्पति या भूगोल नहीं हैं, बल्कि अपने भीतर एक अनंत संभावनाओं का संसार समेटे हुए है। उनके चित्रों में आकार निरंतर परिवर्तित होते हैं और रंगों का विस्तार इस सहजता से होता है कि वह किसी भी नए कलाकार के लिए असाधारण चुनौती हो सकती है, लेकिन प्रयाग जी इसे इतनी सरलता और सहजता से निभा रहे हैं कि उनकी साधना और अनुभव का गहरा आभास रह-रहकर होता है।

प्रयाग शुक्ल का देखा और जिया हुआ अनुभव उनके चित्रों में अलौकिक ढंग से समाहित है। चित्रकला के इतिहास के महान् दिग्गजों के साथ उनके अनुभव ने उन्हें समृद्ध किया है, लेकिन उनके चित्रों में एक सरल, निश्छल चित्रकार की झलक मिलती है, जो बचपन की सच्चाई से झाँकता हुआ दिखाई देता है। हर चित्र एक खिड़की है—एक नई दृष्टि, एक नई आकांक्षा, बाहर की प्रकृति में झाँकने की, उस हरीतिमा से भरे-पूरे संसार में जहाँ सृष्टि है और शायद इस मार्फ़त अपने भीतर की प्रकृति को भी निहारने की गहन आकांक्षा है।

प्रयाग शुक्ल ने अपने वक्तव्य में भी यह स्पष्ट किया कि वह चित्र केवल इसलिए नहीं बना रहे हैं कि उन्हें एक चित्रकार के रूप में स्थापित होना है। उन्होंने कहा—"मैं ये चित्र चित्रकार बनने के लिए नहीं बना रहा हूँ, मैं बस इसलिए चित्र बना रहा हूँ कि मुझे यह पता है कि मेरे भीतर कला है, जैसे हर व्यक्ति के भीतर होती है। मैं अपने भीतर की कला को खोजने के लिए यह चित्र बना रहा हूँ।" यह उनकी आत्मीयता और कला के प्रति गहरी ईमानदारी को दर्शाता है।

उनके चित्रों में रंगों का संयोजन बेहद प्यारा और सरल है, लेकिन साथ ही इतना निर्भीक और निर्मल कि वह मन को अभिभूत कर देता है। रंगों का प्रवाह और आकारों का संयोजन—यह सब कुछ एक ऐसे सहज खेल की तरह लगता है जो उनके के भीतर से स्वतःस्फूर्त रूप से निकल रहा है। कोई छाप, कोई बाहरी प्रभाव नहीं, बस उनका ख़ुद का अनुभव, उनकी ख़ुद की संवेदनाएँ।

कला-अनुभव और उम्र की इतनी लंबी यात्रा के बाद भी उनके भीतर रचने और खोजने की जो बेचैनी है, वो उनके चित्रों में पूरी तरह से स्पष्ट है। उनकी चित्रकला में आकंठ तक डूबने की जिजीविषा, उनके भीतर की प्यास, जो उन्हें बार-बार कला की ओर खींच लाती है, अभिभूत करती है। जैसा उन्होंने कहा, “अगर मेरा कंठ सुरीला होता, तो मैं ख़ूब गीत गाता…” यह उनकी कला के प्रति उस गहरी आत्मीयता को प्रकट करता है, जिसे वह अपनी चित्रकला के माध्यम से आत्मसात कर रहे हैं।

उनके चित्रों को देखना मानो उन खिड़कियों से झाँकना है, जहाँ से वह प्रकृति और जीवन को अपने निराले, आत्मीय दृष्टिकोण से देख रहे हैं। यह प्रक्रिया, साधना और जिजीविषा हमें भी उनके साथ उन खिड़कियों के पार एक नया संसार दिखाने का वादा करती है।

शम्पा शाह का वक्तव्य

कला प्रदर्शनी के शुभारंभ पर शम्पा शाह ने कला की गहन और आंतरिक आवश्यकता पर विचार किए। उन्होंने प्रयाग शुक्ल की चित्रकला यात्रा के उदाहरण से ही कोरोना काल के कठिन समय का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे समय में हर कलाकार के मन में यह प्रश्न उठता है : “क्या हमारे कार्य का अस्तित्व और महत्त्व है?” यह प्रश्न कलाकारों को अपनी रचना की गहराई पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है।

उन्होंने भील जनजाति की एक कलाकार द्वारा सुनाई गई कथा का उल्लेख किया, जिसमें एक राज्य के लोग एक श्राप के कारण हँसना भूल जाते हैं। इस स्थिति में जीवन ठहर जाता है—कोई खेतों में काम नहीं करता, न गीत गाता है और न ही घरों में बच्चे का जन्म होता है। अंततः एक देवी को बुलाया जाता है, जो अपने नृत्य और संगीत से जीवन में पुनः प्रवाह भर देती हैं। देवी का आकाशगंगा तक को जीवंत करने का यह चमत्कार जीवन की उर्वरता का प्रतीक बन जाता है।

शम्पा शाह ने इस कथा के माध्यम से बताया कि कला केवल भौतिक ज़रूरतों को नहीं, बल्कि हमारी आत्मा की गहराई को भी संतुष्ट करती है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर भविष्य में कभी जीवन ठहर जाए या हँसी खो जाए, तो पिठौरा चित्रकला हमें याद दिलाएगी कि कला और हँसी हमारे जीवन के लिए कितनी आवश्यक है। यह आनुष्ठानिक कला हमें प्रेरित करती है कि कठिनाइयों के बावजूद जीवन को पुनः प्रवहमान करने का साहस हम अपने भीतर खोज सकते हैं।

संवेदनशीलता और शिल्प का अद्वितीय संगम

प्रयाग शुक्ल की एकल चित्रकला प्रदर्शनी के साथ ही प्रारंभ हुई समूह चित्रकला प्रदर्शनी में कला के विविध आयामों को संजोए हुए चार विशिष्ट कलाकारों की कृतियों का भी प्रदर्शन हुआ, जो कला के मर्म और उसकी गहनता को अभिव्यक्त करती हैं। इन चारों कलाकारों—प्रीति पोद्दार जैन, साधना शुक्ला, हंसा मिलन कुमार, और छाया दुबे की कृतियाँ न केवल उनकी व्यक्तिगत यात्रा की कहानी कहती हैं, बल्कि मानवीय अनुभवों और भावनाओं की जटिलता को भी दर्शाती हैं। इस कला प्रदर्शनी में कलाकारों की कृतियों, शिल्प और दृष्टिकोण ने सभी पर गहरा प्रभाव भी डाला।

प्रीति पोद्दार की कला एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। अक्षरों के माध्यम से भावनाओं को मूर्त रूप में देखना अपने आप में एक अत्यंत दुर्लभ और सशक्त प्रयास है। उनकी कृतियों में अक्षर किसी भाषा के वाहक मात्र नहीं होते, बल्कि वह जीवंत प्रतीक बन जाते हैं, जो अनकही भावनाओं का बोझ ढोते हैं। ‘अनसेंट लेटर्स’ शृंखला इस संदर्भ में और भी गहरी लगती है, जहाँ भेजे न जा सके पत्रों की अव्यक्त भावनाएँ कला के माध्यम से सामने आती हैं। उनकी कला शिल्प, गहनता और अमूर्तता का एक बेहतरीन समागम है।

साधना शुक्ला की कृतियों में सामाजिक न्याय और महिला-कल्याण का मर्म स्पष्ट रूप से झलकता है। उनका कला कर्म न केवल सौंदर्यबोध में समृद्ध है, बल्कि उसमें एक सामाजिक चेतना भी शामिल है। साधना के काले-सफेद चित्रों की शृंखला जीवन के साधारण क्षणों को एक नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर प्रदान करती है। साधना की कला हमें रोज़मर्रा के जीवन की बारीकियों और उन भावनाओं के साथ जोड़ती है, जो अक्सर हमारी नज़रों से बच जाती हैं। 

हंसा मिलन कुमार की कला की सबसे बड़ी ख़ूबी उसकी मौन भाषा है। उनकी रचनाएँ प्रकृति के शांत स्वरूप और उसके असीम गूढ़ता से प्रेरित हैं। इस प्रदर्शनी में उनकी कला को देखते हुए, मुझे यह एहसास हुआ कि हंसा की कृतियाँ एक प्रकार की ध्यानात्मक यात्रा की तरह हैं—जहाँ हर रेखा, हर रंग प्रकृति के साथ एक अंतहीन संवाद में उलझा हुआ है। 
छाया दुबे की कला में रंगों के साथ उनका खेल और उनके चित्रों में शामिल बनावट एक गहरी सृजनात्मकता का प्रतीक हैं। उनकी कला मानो रंगों और सुगंधों का एक मेल है—जैसे कोई संगीत जो हवा में बिखरता है, और जिसे सुना नहीं, बल्कि महसूस किया जाता है।

इस प्रदर्शनी ने कला की विविधताओं को दर्शाते हुए चारों कलाकारों की सृजनात्मक यात्रा को एक मंच पर रखा। हर कलाकार ने अपने अलग-अलग दृष्टिकोण से जीवन, भावनाओं और प्रकृति के जटिल संबंधों को परिभाषित किया। प्रदर्शनी के दौरान इन कृतियों को देखना किसी साधारण अनुभव से परे था—यह एक गहन आत्मीय यात्रा थी, जहाँ कला और विचार एक-दूसरे के पूरक बन गए। चारों कलाकारों का काम हमें यह बताता है कि कला केवल देखने की वस्तु नहीं है, यह एक ऐसा माध्यम है जो हमारे आंतरिक अनुभवों और भावनाओं को समझने और अभिव्यक्त करने का मौक़ा देती है।
यह प्रदर्शनी एक यादगार अनुभव थी, जिसने न केवल मुझे, बल्कि हर दर्शक को गहराई से छुआ और कला की अनंत संभावनाओं की ओर संकेत किया।

आर्ट स्पेस : भोपाल की सांस्कृतिक धरोहर का नया अध्याय

‘आर्ट स्पेस, भोपाल’ का भव्य शुभारंभ 5 अक्टूबर को प्रयाग शुक्ल की एकल चित्रकला प्रदर्शनी मिरियड ह्यू और छाया दुबे, हंसा मिलन कुमार, साधना शुक्ला, और प्रीति पोद्दार जैन की समूह प्रदर्शनी के साथ भोपाल में हुआ। ‘आर्ट स्पेस, भोपाल—एक नया कला केंद्र है, जो स्थानीय कलाकारों को अपने सृजन का प्रदर्शन करने का मंच प्रदान करता रहेगा। यह स्थान प्रदर्शनी, वर्कशॉप और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए उपलब्ध रहेगा। 

पंकज जैन, इस केंद्र के संस्थापक हैं, कला के प्रति अपनी गहरी रुचि और समर्पण के साथ उनका उद्देश्य आर्ट स्पेस को एक सहयोगी मंच बनाना है, जहाँ विभिन्न कला रूपों को एकत्रित किया जा सके। आर्ट स्पेस और पंकज जैन की यह साझेदारी भोपाल की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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प्रयाग शुक्ल के बनाए कुछ चित्र :


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