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भट्टनारायण

संस्कृत के सुप्रसिद्ध नाटककार। 'वेणीसंहार' कृति के लिए उल्लेखनीय।

संस्कृत के सुप्रसिद्ध नाटककार। 'वेणीसंहार' कृति के लिए उल्लेखनीय।

भट्टनारायण के उद्धरण

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ओह, स्त्रियों का कैसा भोलापन!

यदि युद्ध को छोड़ने पर मृत्यु का भय हो तब तो अन्यत्र भाग जाना उचित है। किंतु प्राणी की मृत्यु अवश्य ही होती है। तो फिर यश को व्यर्थ क्यों कलंकित कर रहे हो?

भीष्म समाप्त हो गए, द्रोण मारे गए, कर्ण का भी नाश हो गया। अब पांडवों को शल्य जीत लेगा ऐसी आशा है। हे राजन्! आशा बड़ी बलवती होती है।

तेजस्वी पुरुष सशस्त्र भुजा रूपी डोंगी से शत्रु द्वारा मारे गए कुटुंब के दुःखरूपी सागर को पार करता है।

उपकार्य के अभाव में उपकारी सामग्री से क्या लाभ?

मनुष्य दीनतारहित होकर और रोगरहित होकर पुरुष की पूर्ण आयु तक जिए।

महापराक्रमी का, कारण के बिना भी डरा हुआ चित्त विचार करने में शिथिल हो जाता है।

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घड़े के कुएं में गिर जाने पर रस्सी को भी वही नहीं फेंक देना चाहिए।

सोता हुआ व्यक्ति क्या नहीं देखता है?

स्त्रियों के चित्त साथ में रहने के कारण पति के सदृश ही हो जाते हैं।

उच्च या नीच कुल में जन्म होना भाग्य के अधीन है। मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है।

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