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भट्टनारायण

भट्टनारायण के उद्धरण

ओह, स्त्रियों का कैसा भोलापन!

भीष्म समाप्त हो गए, द्रोण मारे गए, कर्ण का भी नाश हो गया। अब पांडवों को शल्य जीत लेगा ऐसी आशा है। हे राजन्! आशा बड़ी बलवती होती है।

तेजस्वी पुरुष सशस्त्र भुजा रूपी डोंगी से शत्रु द्वारा मारे गए कुटुंब के दुःखरूपी सागर को पार करता है।

सोता हुआ व्यक्ति क्या नहीं देखता है?

स्त्रियों के चित्त साथ में रहने के कारण पति के सदृश ही हो जाते हैं।

उच्च या नीच कुल में जन्म होना भाग्य के अधीन है। मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है।

महापराक्रमी का, कारण के बिना भी डरा हुआ चित्त विचार करने में शिथिल हो जाता है।

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