भट्टनारायण के उद्धरण


भीष्म समाप्त हो गए, द्रोण मारे गए, कर्ण का भी नाश हो गया। अब पांडवों को शल्य जीत लेगा ऐसी आशा है। हे राजन्! आशा बड़ी बलवती होती है।
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तेजस्वी पुरुष सशस्त्र भुजा रूपी डोंगी से शत्रु द्वारा मारे गए कुटुंब के दुःखरूपी सागर को पार करता है।




महापराक्रमी का, कारण के बिना भी डरा हुआ चित्त विचार करने में शिथिल हो जाता है।
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संबंधित विषय : डर
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