वर्षा पर पद

ऋतुओं का वर्णन और उनके

अवलंब से प्रसंग-निरूपण काव्य का एक प्रमुख तत्त्व रहा है। इनमें वर्षा अथवा पावस ऋतु की अपनी अद्वितीय उपस्थिति रही है, जब पूरी पृथ्वी सजल हो उठती है। इनका उपयोग बिंबों के रूप में विभिन्न युगीन संदर्भों के वर्णन के लिए भी किया गया है। प्रस्तुत चयन में वर्षा विषयक विशिष्ट कविताओं का संकलन किया गया है।

घिरि घिरि घोर घमक घन धाए

भारतेंदु हरिश्चंद्र

आईं जु स्याम जलद घटा

गोविंद स्वामी

गरजत गगन उठे बदरा

गोविंद स्वामी

सखी री मेरा बोलन लागे

भारतेंदु हरिश्चंद्र

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere